लिखते हैं जब सब खुशी पर मैं सोचता हूं सिर्फ शराब लिख दूँ छलकाते हैं जाम वो भले लोग हैं बाकी सबको मैं खराब लिख दूँ
देखूं उसे तो बस मैं देखूं ,बाकी सबके हिस्से में हिजाब लिख दूँ
कर्ज़ में इश्क़ के गुजारा हुआ कि कितना क्या क्या हिसाब लिख दूँ
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मूर्खों की बस्ती में गवारों का पहरा है
हर शख्स अंधा है हर शख्स बहरा है
नफरत हर दिल मे खूबसूरत हर चेहरा है
न तो विकास रुका न भ्रष्टाचार ठहरा है
किसने लूटा किसने बांटा राज बहुत ये गहरा है
मूर्खों की बस्ती में गवारों का पहरा है
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जाने के बाद ग़ैरों से न उसकी बात कीजिये
वक़्त रहते उसी से खुद उसी की बात कीजिये-
मेहनत परेशानी हर एक दर्द में गजब का आराम होता है
नाम तो सबका है पर कुछ का ही जहां में नाम होता है-
पुरखो की दी विरासत और गांव की कोठी में ताला करके
जोड़ा है हुजरा एक शहर में विदेश से उसने मुताला करके
चमकते कपड़े, सफेद दमड़ी और मन को बहुत काला करके
वो सोचते हैं मिल जाएगा खुदा हजार तस्बीह की माला करके
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जमे हुए बालों को बिखेरती थी फिर उन्हें वो सवांर जाती थी,
वो गुस्से में कभी हमें दुपट्टे के कोने से ही मार जाती थी |
वो गलत तो मैं जीता मेरी गलती पर वो खुद हार जाती थी,
बनारस सी ख़ूबसूरत लड़की हमे मिलने गंगा के पार आती थी |
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पैरो में पड़े छाले जलते बदन से सूरज भी हैरान हो गया..
सड़क हार गई, भूख रो पड़ी, पटरी पर शमशान हो गया..!
गरीबी का अनदेखा हुआ अमीरी का फिर मान हो गया..
बरसे कुछ फूल आसमां से, और मेरा भारत महान हो गया..!!-
हमें जीवन में चप्पल, झाड़ू और बेलन का सही इस्तेमाल समझाने वाली शक्ति को मातृदिवस की शुभकामनाएं ..!
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हुआ है इंसा इंसान का दुश्मन क्या गजब यह मुकाम आया है..
बद से बदतर हालत का समाचार हर सुबह हर शाम पाया है..!
मेरे जानने वाले,बाजू वाले,तो कभी अनजान का नाम आया है..
मिलते थे रोज़ जिनसे अब उनसे भी दूरियां बनाना काम आया है.. !
कही बरसते फूल कहीं पत्थर तो कही बदसलूकी का इंतेजाम पाया है..
फरिश्ते कर रहे इलाज पर जाहिलों को ज़रा नही आराम आया है.. !
कभी अल्लाह कभी ईशु कभी गोविंद कभी बनकर कोई राम आया है..
सारे मंदिर,मस्जिद बंद हो गए अब इंसा ही इंसान के काम आया है.. !
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