अब बस भी करो,
कुछ देर चुप रहना चाहता हूँ
बहुत गोते लगाए समुन्दर कि गहराई मे
अब बस सतह पर तैरना चाहता हूँ
फूंक-फूंक कर रखें कदम हर बार
जरा बेवजह लड़खड़ाना चाहता हूँ
हाँ , बेअदब, बेढ़ब, फिजुल है सब
फिर क्यूँ , नामाकूल कहलाना चाहता हूँ
लाख समझाया इस खुदगर्ज दिल को
पता नहीं क्यु बस उसे ही चाहता हूँ
जैसे समुन्दर में मिलती है नदी कोई
बस वैसे ही उसमे मिल जाना चाहता हूँ
-