Deeya Singh   (The Word Architect)
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Joined 26 April 2018


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24 FEB 2020 AT 0:39

"हमसफ़र"

चाहे जाना हो
पास या मिलो दुर
Phone
Charger
और, Earphone
बस यही हैं
सच्चे साथी !

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8 MAY 2019 AT 23:07

।।स्त्री।।

बेटी किसी की
बहन किसी की
किसी की माँ
हूँ "मैं"
है संसार जिस से
विधाता का वो अद्भूत अवतार
हूँ "मैं"
इस सृष्टि का सार
हूँ "मैं"
फिर क्यूँ ? कहते ,बेकार
हूँ "मैं"
पति का सम्मान , पिता का स्वाभिमान
हूँ "मैं"
वक़्त के साथ, तिरस्कृत , बहिस्कृत , अपमान
हूँ "मैं"
सौम्या , निर्भया का बलिदान
हूँ "मैं"
पुरुषप्रधान समाज के सोच से हैरान
हूँ "मैं"

कब तक समेटने , रोकने की कोशिश करोगे
अतल , अथाह हूँ "मैं"

-The Word Architect



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5 MAY 2019 AT 21:17



मुफ़्लिसी देखी , उस गुब्बारे वाले कि
क्या है उसका , फीर भी मुस्कुराता है

पता नहीं , उन गुब्बारों में गम भरता है या खुशियाँ
मगर , अपने हिस्से की हंसी किसी और के होठों पर जरूर सजाता है

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3 MAY 2019 AT 6:46

अब बस भी करो,
कुछ देर चुप रहना चाहता हूँ

बहुत गोते लगाए समुन्दर कि गहराई मे
अब बस सतह पर तैरना चाहता हूँ

फूंक-फूंक कर रखें कदम हर बार
जरा बेवजह लड़खड़ाना चाहता हूँ

हाँ , बेअदब, बेढ़ब, फिजुल है सब
फिर क्यूँ , नामाकूल कहलाना चाहता हूँ

लाख समझाया इस खुदगर्ज दिल को
पता नहीं क्यु बस उसे ही चाहता हूँ

जैसे समुन्दर में मिलती है नदी कोई
बस वैसे ही उसमे मिल जाना चाहता हूँ

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31 MAR 2019 AT 22:52

Aaj dil ne aaram farmaya
Dimag ne thoda jor lgaya
To hmne bhi....kuchh krne ka socha
Aur.....
Mtlbiyo ka ek bajar bulaya..
Puri duniya mtlbi hone k bawjud...
Mtlb k is bajar me, hmne khud ko akela paya.

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1 JAN 2019 AT 23:12

नए साल के मंसूबे,
कुछ ठिक नहीं लगते
कहते तो है ज़नाब..
मुक़ाम ऊँचा दिलाएँगे
गम की चादरों को हटा
ख़ुशी की बरसात लाएँगे
अब पता नहीं...
हमें तो लगता है
उस पुराने साल की तरह
ये भी यूँही गुज़र जाएँगे।

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2 NOV 2018 AT 13:48

टुट कर बिखर रहा है
वो मकान...
जो कभी मजबूती का
मिसाल हुआ करता था

कुछ इस कदर विरान
है उसकी गलियां
मानो अब वो बोलना नहीं चाहता
अब अपने अंदर किसी को सँजोना नही चाहता

अब...बस इंतजार है उसे
खाख होने का
उसके ईंटों के राख
होने का....

रिश्तों के होने पर ही
तो उसका महत्व है
नहीं तो मकां....
किस काम का।

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18 OCT 2018 AT 15:54

आने की चाहत नहीं,
ये तो बस कहने की बात है।

कान्हा अपनी राधा से दूर कहाँ,
वो तो हर पल उसके साथ है।

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16 OCT 2018 AT 20:51

ओ कान्हा....
अब यूं आ
की तुझे आने में लम्हा लगे,
और जाने में बरस।


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14 OCT 2018 AT 22:03

क्या गजब रित है इस दुनियां की.....

एक माँ जो भूख से बिलख रही हो,
उसे कुछ भी देने से कतराते हैं।
और जो माँ कुछ लेती नहीं,
उसको भोग लगाते हैं।

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