भा गया पिंजरा इतना कि चाह कर भी फ़रार नहीं हुआ,
इश्क़ तो हुआ था हमको, कमबख़्त इज़हार नहीं हुआ।
खुदा जाने कैसे वाकिफ़ हो गया तमाम शहर,
किस्सा हमारा आज तक शामिल-ऐ-अख़बार नहीं हुआ।
है झूठ कि, बहुत कुछ सिखाते हैं ये हिज्र के पल,
मुझे देख लो, मैं आज तक होशियार नहीं हुआ।
दिल खुद पर शक करता है, जब वो मुस्कुरा के कहती है,
तुम क्या जानो, तुम्हे तो कभी प्यार नहीं हुआ।
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