दिल की ख्वाहिशों को यू ही तूल नहीं देते
बेवजह किसी को हम इश्क का फूल नहीं देते
राज़-ए-इश्क जिसके ठहरता है सीने में
मजा आता है उसी के साथ जीने में
फिर चलता है सिलसिला इश्क-ए-जाम का
बड़ा पर्दा है इसमे अंजाम का
पिलाने वाला कामिल है बड़ा
अफलाक का जाम है, नज़र से नज़र पीती है
क़ातिल है वो, क़त्ल ही करेगा
तू हुनर पैदा कर मर मिटने का
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