तुम नगर निगम की जेसीबी,
मैं हूं अवैध निर्माण प्रिये।
तुम चंचल गाय की प्रतिछाया,
मैं खुला घूमता सांड प्रिये।।-
मैं कतरा होकर भी दरिया से जंग करता हूं,
मुझे बचाना समंदर की जिम्मेदारी है।
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत,
ये एक चिराग कई आंधियों पर भारी है।।
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नहीं हममें कोई अन बन नहीं है।
बस इतना है कि अब वो मन नहीं है।।
मैं अपने आप को सुलझा रहा हूँ।
तुम्हें लेकर कोई उलझन नहीं है।।-
गुजर गया जो किसी दिन गुजरने वाला था।
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था।।
मेरा नसीब ऐसा कि मेरे हाथ कट गए।
वरना मैं तेरी मांग में सिंदूर भरने वाला था।।
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दिल अमीर था, मुक़द्दर गरीब था।
अच्छे हम थे,बुरा नसीब था।।
कोशिश करके भी कुछ ना कर सके हम।
घर भी जलता रहा और समंदर भी करीब था।।
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जिसको मिली वो,मुझे उसकी हथेली देखनी है।
कैसी होती है लकीर जो मेरे हाथों में नहीं है।।-
रात होगी तो चाँद भी दुहाई देगा।
तुम्हें ख़्वाबों में एक चेहरा दिखाई देगा।।
ये मोहब्बत है,सोच कर करना इसको।
एक आंसू भी गिरा तो सुनाई देगा।।
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कभी नींद आया करे तो सो भी लिया करो।
यूं रातों को जागने से मोहब्बत लौटा नहीं करती
।।-
उसके ना मिलने का मलाल तो रहेगा।
खुद को लाख समझा लूं,मगर ख्याल तो रहेगा।।
मैं इस जहां में उस एक शख्स का हकदार नहीं था क्या।
खुद से मेरा ये सवाल तो रहेगा ।।-
उसकी गली में मुझको जाना नही।
हाल कैसा है ये भी बताना नहीं।।
बड़ी हसरत है जाना उस दिन की।
वो कहे मैं हूँ, मैं कहूं पहचाना नहीं।।-