एक युग बिता वनवास में,
सिर्फ जीत के ही आश में
क्यों रुका है तू दहलीज पर,
जब मंजिल है तेरे पास में..
क्या थक गया तू चलते चलते,
क्या और अब ना चल सकेगा..
क्या वर्षों की मेहनत को तू,
आलस के बदले कुचल सकेगा..
सोच कितना कष्ट होगा,
जब सूर्य कल को अस्त होगा..
जब रजनी काली आएगी,
आरोप तुझपे लगाएगी..
क्या हार का मुख देख कर,
आराम तब तू कर सकेगा..
मंजिल निकट है अब न रुक,
क्या मौका फिर ये आएगा..
एक युग बिता वनवास में,
क्या वनवास फिर तू जायेगा!! -yourakhand
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