"समाज की सीख"
ये समाज सीख देता है मुझे, हद में रहने की।
जो माफी देता है बेटों को, पीकर बहकने की।
ये समाज सीख देता है मुझे, सही कपड़े पहनने की।
जो माफी देता है बेटों को, जवानी में फिसलने की।
ये समाज सीख देता है मुझे, जल्दी घर अाने की।
जो आज़ादी देता है बेटों को, रातों बाहर घूमने की।
ये समाज सीख देता है मुझे, ज्यादा ना बोलने की।
जो उपाधि देता है बेटों को, आवाज बुलंद करने की।
ये समाज सीख देता है मुझे, अकेले बाहर ना जाने की।
जो हिम्मत ना रखता बेटों से, देर का कारण पूछने की।
ये समाज सीख देता है मुझे, आंखे ना मिलाने की।
जो शाबाशी देता है बेटों को, टशन में रहने की।
ये समाज सीख देता है सबको, बेटा बेटी समान होने की।
लेकिन आज जरूरत है इसके, भेदभाव को जानने की।
हमें जरूरत सीख की नहीं , समानता और सम्मान की है।
समाज के बीच अपनी आज़ादी, आन, बान और पहचान की है।
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