लाखों मुश्किल ढ़ेरो गम आएशे ही कुछ बिखरे हम फिर भी नही है आँखे नम रोना भी अब आता नही है क्या पत्थर के हो गये हम एक मुददत से सोये नही है आँखे में है अब सपने कम आएशे ही कुछ बिखरे हम
मैं जब लड़खड़ाउ तो ,एक बात याद आती है। आंशु कोई भी पोछे , मुझे मेरी मां याद आती है। दर्द को फूल बना दे, अभी ऐसी जमाने में कोई दवा नहीं मिली । आज मां ने, सर पे हाथ रखा, इससे अच्छी भी जिंदगी में कोई दुआ नहीं मिली।
अदाकारी की ज़माने में एक नई नींव रख के, व्यक्तित्व की ना मिटने वाली मिसाल बन के, समेट के ले गया वो एक दौर अपने साथ, एक युग में समा गया, एक युग को रच के!