अभिनंदन श्रीवास्तव   (अभिनंदन श्रीवास्तव)
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A Writer in Shadows
Joined 24 May 2020


A Writer in Shadows
Joined 24 May 2020

मुस्कुराहट में दर्द का समुन्दर समो लेता हूँ,
मैं अक्सर दुनिया से छिपकर रो लेता हूँ!

हर बार सूखकर मुरझाता है उम्मीद का पेड़,
हर बार आँसुओं से सींचकर फ़िर बो लेता हूँ!

ये रातें अटी पड़ी हैं बेहिसाब खयालों से,
लिपटता हूँ चंद यादों से, सिरहाना भिगो लेता हूँ!

एक अजीब सा सूनापन फैला है दिल की बस्ती में,
खाली अँधेरी गलियों में, खुद को कहीं खो देता हूँ!

मैं अक्सर दुनिया से छिपकर रो लेता हूँ!

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हम दोनों के दरमियाँ आजकल, ज़रा दूरियाँ हैं,
क़सूर उसका नहीं, कुछ मेरी ही गलतियाँ हैं!

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जो मुमकिन होता दुनिया में कहीं,
तो जाकर फ़िर से अपनी तक़दीर बनवा लेता!
अगर बाज़ार में बनती होती टैटू की तरह तो,
अपने हाथों में उसके नाम की लकीर बनवा लेता!

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दिन गुजरे, रातें ढलीं, मंज़र वो अब पहले सा नहीं,
जो था कभी, शायद अब वो वक़्त पहले सा नहीं,
थोड़ा ज़िंदगी ने मुझे उलझाया,
थोड़ी ज़िंदगी उसकी भी बदली,
वो शख्स मिला एक अरसे बाद, मगर पहले सा नहीं!

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ये उँगलियाँ तेरी उँगलियों में फ़िर उलझें, तो सुकून मिले,
चांदनी रात, रिमझिम बारिश और हम मिलें, तो सुकून मिले!

तू खो जाये मेरी बाँहों में, मैं डूब जाऊँ तेरी आँखों में,
मेरा सर तेरे कंधों पे आकर झुके, तो सुकून मिले!

यूँ तो चलती है एक महफ़िल, बनके हमसफ़र साथ मेरे,
मगर सिर्फ़ एक तेरा चेहरा दिखे, तो सुकून मिले!

तेरे आगे भूल जाऊँ, मैं सुरूर तमाम महखानों का,
नशा बस तेरी मोहब्बत का चढ़े, तो सुकून मिले!

थककर बैठा हूँ, मैं अब बस एक तेरे इंतज़ार में,
तू आकर लगा ले अपने गले, तो सुकून मिले!

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जब कोई हाल-ए-दिल सुनने वाला ना हो,
जब कोई मन को पढ़ने वाला ना हो,
जब कोई आपको समझने वाला ना हो,
तब अकेलापन महसूस होता है!

जब रूठो और कोई मनाने वाला ना हो,
जब आँख नम हों और कोई गले लगाने वाला ना वो,
जब मन भारी हो और कोई हिम्मत बढ़ाने वाला ना हो,
तब अकेलापन महसूस होता है!

जब छोटी सी गलती गुनाह करार दी जाए,
जब हर कोशिश बेकार सी जाये,
जब हर बात, जज़्बात, शख्सियत ही नकार दी जाये,
तब अकेलापन महसूस होता है!

जब ख़ामोशी आपकी मजबूरी बन जाये,
जब कुछ ना कहना जरूरी बन जाये,
जब खुद से ही एक दूरी बन जाये,
तब अकेलापन महसूस होता है!

जब हर मोड़ पर आप ग़लत होने लगो,
जब सबसे छिपकर आप रोने लगो,
जब खुद से ही खुद को खोने लगो,
तब अकेलापन महसूस होता है!

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प्यारी सी शाम, बालकनी, एक प्याला चाय,
थोड़ी उधेड़बुन, थोड़ा आराम, कुछ ज़बाव, कुछ सवाल,

एक खुला आसमान, धीमी हवा, लहराते पेड़,
और बेधड़क उड़ते, कुछ परिंदे और मेरे ख़याल!

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दिल की हदों से, बेइंतेहा, बेशुमार किया था,
हाँ, मैने भी कभी टूटकर प्यार किया था!

ख्वाहिश थी उसके नाम के साथ मेरा नाम जुड़े,
कहीं भी चलूँ मैं, हर राह उसकी तरफ़ ही मुढ़े,
उसके साथ ही क़ामिल है ज़िंदगी, ये ऐतबार किया था!

अपने चाँद से चेहरे पे वो छोटी सी बिंदी लगाती थी,
थिरकती थी ख़ुशी जब भी वो मुस्कुराती थी,
उसकी एक झलक पे फ़िदा दिल को कई बार किया था!

उसके हाथों में मेरे नाम की मेंहदी रचती,
मैं बारात लेकर जाता, डोली उसकी सजती,
उसके साथ हर रस्मो रिवाज़ का,
मैंने अपने तसव्वुर में दीदार किया था!

हाल अपने दिल का मैं उसे समझाने जा रहा था,
प्यार कितना है, ये बतलाने जा रहा था,
सारी हिम्मत समेटकर मैंने,
खुद को इज़हार-ए-इश्क़ के लिए तैयार किया था!

एक रोज़, ख्वाहिशें सारी बिखर गयीं, हर एक ख़्वाब टूट गया,
मुझे ज़िंदा रखने वाले शख्स से, मेरा साथ छूट गया,
हारकर ज़िंदगी से अपनी उसने, खुद को मौत के घाट उतार लिया था!

आज भी अक्सर दिल की दीवारों पे, उसके नाम के मिलते हैं,
एक घर लिया है खयालों की बस्ती में, हम दोनों अब वहां रहते हैं,
उन्हीं टूटे ख़्वाबों को जोड़ रहा हूँ, जिन्हें किस्मत ने तार-तार किया था!

हाँ, मैने भी कभी टूटकर प्यार किया था!

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कुछ रंग बीते कल के, तो
कई गुजरे ज़माने बाहर निकले,

मैंने खोला जो आज दीवान,
कुछ शौक़ पुराने बाहर निकले!

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ना पूछो हो गया है क्या, आजकल हाल नौकरी का,
सहा जाता नहीं है अब तो ये भूचाल नौकरी का,
उगल सकते नहीं इसको, निगल सकते नहीं इसको,
गले की फ़ांस सा कुछ रूप है फिलहाल नौकरी का!

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