सौक से जीने का तरीका मालूम है मुझे
ये महंगा लिबास मुझे नहीं भाता
देती है चाहते तो दस्तक कई बार
सोच कर ये महंगा हिसाब हमे नही भाता
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Find Your Name And Find Your Voice By Speaking Yourself.
घर को घर रहने दें मकान की क्या जरूरत
किसको क्या दिखाना फिर साजो सामान की क्या जरूरत
खरीदार तो पहले अपने ही खड़े है द्वार पर
फिर सामान से लदे हुए दुकान की क्या जरूरत
आखिरी मे मैं खुद ही पूछता हूं हाल अपना
मेरे जैसे खुशनाशीब को मेहमान की क्या जरूरत
जो कहते हैं जो कुछ भी है सब मेरा है
हाय ऐसे कहने वालों की भगवान की क्या जरूरत
जो बना लिया अच्छा सा आसिया अपना
उनका अब ये कहना की आसमान की क्या जरूरत
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प्यार और बलिदान की कोई मूरत हो तुम
किसी भगवान रूप की सूरत हो तुम
संस्कार से भरे किसी झील नदी तालाब सा
कभी गुस्सा तो कभी प्यार, हर रूप में खूबसूरत हो तुम-
तू ना सही तेरी जैसी तस्वीर से गुजरा करते हैं,
अपनी फुटी किस्मत और तकदीर से गुजारा करते है।
कहते हैं लोग मिलेगी किसी न किसी रोज वो मुझे,
राह में इंतजार करता उस राहगीर सा गुजारा करते है।।-
एक है जो मेरे सही और अपने गलत होने पर खुश होता है
जब नाराज हो जाए तो अन्दर से बहुत रोता है
वो कहने की बातें है कि बड़ा होने पर हर कोई जलता है
अपने बाप को देखो सर ऊंचा कर के चलता है-
तुम एक ढूंढो हजार मिलेंगे,
बहुत ही एक जैसे किरदार मिलेंगे।
सबकी एक अपनी कीमत है,
बिको तुम कितने खरीदार मिलेंगे।
आखिरी सांस भी फना करने से,
कुछ नहीं होता जहां हम हैं।
तुम जीने की बस तमन्ना छोड़ कर देखो,
जां लेने को कितने तैयार मिलेंगे।
–jryuaan
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कब तक समेटे खुद को, इंतजाम करे कब तक
सब कुछ जुदा हो चुका ये सांस रहेगी कब तक
मैं लुट चुका या लूटा गया खबर किसी को नहीं
मैं ऐसे नही था किया गया ये बताऊं तो कब तक
सब थे यार मेरे अब कहां है कोई साथ देने को
ये मैं भूल जाता हूं कोई दिलाए याद तो कब तक
सुबह को शाम किया जिसके साथ यार मैंने
वो शख्स आता तो मेरे पास यार कब तक
कब तक सहेंगे हम जिंदा लास का तना
शायद अब मौत ही करे हिसाब तब तक
—jryuaan
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अपने गलियों में ही इश्क को सवारों ,
सबके हिस्से में वाराणस नही आता ।।
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चेहरे की लक़ीरों को, कुछ यूँ कि चिढ़ाया जाए,
चाय पे कमीनों को, बचपन के बुलाया जाए,
मुश्किल से अभी कटते हैं, दिन ये तन्हा अब,
मसरूफियत में बिसरे कुछ, यारों को बुलाया जाए,
इतनी भी नहीं अच्छी ये, ख़ामोशी होठों की,
कुछ सुनने कुछ कहने की, रिवायत को बढ़ाया जाए,
मुमकिन है सुर्ख़ रँगों की, बातें फिर महक जाएँ फिर,
दरख़्तों पे लदे फूलों को, चुपके से गिराया जाए,
आईनों ने संजीदा ही, बेशक़ से मुझे देखा है,
कभी उम्र की बेचैनी को, बचपन से मिलाया जाए-
बेफिक्र हमें सौंपीये एक और बेरंग साल,
हम बिगड़ी बनाने में हीं माहिर हैं।-