ख़्वाब ऐसा जो मुकम्मल भी, नहीं भी
इश्क़ में वो मेरे पागल भी, नहीं भी
ज़िंदगी गर इम्तिहाँ लेती रहेगी
इम्तिहाँ होंगे मुसलसल भी, नहीं भी-
Dileep Kumar
(दिलीप कुमार)
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ख़्वाब ऐसा जो मुकम्मल भी, नहीं भी
इश्क़ में वो मेरे पागल भी, नहीं भी
ज़िंदगी गर इम्तिहाँ लेती... read more
इश्क़ में वो मेरे पागल भी, नहीं भी
ज़िंदगी गर इम्तिहाँ लेती... read more
Joined 14 December 2018
11 JAN 2022 AT 11:47
28 MAY 2020 AT 8:46
गमों के बोझ तले थोड़ा सहम गये है
वरना हम भी बातों में अंगार उगलते है-
26 MAY 2020 AT 12:08
ये जो चेहरे पर तुम्हारे उदासी छायी है
लगता है आज फिर उसकी याद आयी है-
23 MAY 2020 AT 12:19
लहजे में नरमी बहुत भारी पड़ी मुझको
हर बार मुझे ही कसूरवार ठहराया गया-
22 MAY 2020 AT 17:05
बुरे वक्त को मुझसे बेहतर कौन जानता है
अपनी ही गलती भला कौन मानता है
और मैं तो उसके आने के इंतज़ार में था
वरना रात को दिन बनाकर कौन काटता है-
22 MAY 2020 AT 16:56
इक मोड़ पर आकर रुक गया है रिश्ता हमारा
अब सच कहूँ तो टूट गया है रिश्ता हमारा-
22 MAY 2020 AT 14:28
इक अजीब सा दौर चल रहा है इन दिनों
शायद धीरे धीरे कोई मर रहा है इन दिनों-