टूटे थे, टूटे हो,...
टूटे ही रह जाओगे...
पत्थरों के दौर में...
अगर दर्पण बन जाओगे...-
मैं दर्पण हूँ, मैं दर्पण हूँ...,
मैं हर चरित्र को अर्पण हूँ
अभिमानी का अभिमान हूँ मैं
हर गुज़रे कल का ग्यान हूँ मैं
नयनो के सच का राज़ हूँ मैं
हर सच्चाई का आज हूँ मैं
मैं दर्पण हूँ, मैं दर्पण हूँ...,
मैं हर चरित्र को अर्पण हूँ
स्वाभिमानी का स्वाभिमान भी हूँ
हर बुद्धिमानी का ग्यान भी हूँ
मैं आज भी हूँ, मैं कल भी हूँ,
मैं ही सच्चाई, मैं छल भी हूँ
मैं दर्पण हूँ, मैं दर्पण हूँ...,
मैं हर चरित्र को अर्पण हूँ।
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मैं देखूँ जो दर्पण मुझे उसमें तुम नजर आते हो !
तुम हो दूर पर फिर भी मेरे आस पास मंडराते हो !!-
जब से आंखों में उसकी,
देखा है ख़ुद को मैंने !
मैं मुझे ही दर्पण में,
अब अच्छी नहीं लगती !
❣️
प्रेम का तो पता नहीं मुझे,
पर उसकी आँखों में !
जाने क्यों मैं दर्पण से ज्यादा,
यार हूँ जँचती !!-
🎆🙏😘🇮🇳🙏🎆
मेहँदी ,रोली छोड़ के फिर 'करवाल' हाथ लिए आयी हूँ ,
भारत वन्दन के खातिर फिर कलम चलाने आयी हूँ ,
भूल नहीं पाती मैं अपने , वीरों की कुर्बानी को ,
आज़ादी के हवन कुंड में , झोंका जिसने जवानी को,
कैसे भूलूँ वीर शिवा को और कैसे शिवनेरी को ,
नहीं भूली मैं 'घास की रोटी' ना 'आज़ाद की गोली' को ,
'सरफरोशी की तमन्ना' रखने वाले वीर जवान थे वे ,
'मैं' , 'तुम' , 'ये' , 'वो' करने वाले नहीं, अरे पूरा हिंदुस्तान थे वे ,
हाँ , माना मैं दीवानी हूँ अपने हिंदुस्तान की ,
कलम सिपाही बन लिखती हूँ पंक्तियाँ उनके बखान की,
' अद्वितीय कलम' एक ' दर्पण ' है अपने भारत महान की ,
जन गण मन को यहीं मिलेगी झांकी हिंदुस्तान की ।।
जय हिंद 🇮🇳 जय भारत 🙏-
वाक़ई बहुत खूबसूरत हो तुम अगर यकीन नहीं तो
कभी निहारना खुद को मेरी कविताओं के दर्पण में-
अच्छा सुनो ना...
आज कल सुकून एक ही जगह मिलता हैं,
दर्पण देख कर !!
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देखा जब तेरे आखों के दर्पन में
मेरा ही अंश नजर आया
रूठा रहा मुझसे मेरा खुदा
और उस खुदा में मैंने तेरा ही झलक पाया
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