बेशक़ तामीर की सैकड़ों इमारतें उन मजदूरों ने,
अफ़सोस अपने लिए चन्द दिनों का आशियाना भी ना तलाश पाये।-
जान-ए-बहार-ए-ज़िंदगी मुझसे जरा नज़रे मिलाए जा,
साया-ए-ज़ंजीर से मुझे फ़ैज़ करा या रिहा कराए जा।
वो घुट के कहीं मर ही न जाए मेरे अंदर दीप जलाए जा,
गुरुओं की महिमा से कब से दूर हूं मुलाकात कराए जा।
सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब जिंदगी का बाब कौन सिखाएगा,
जारी है अश्क-बारी इज़्तिराब जिंदगी का कौन बरी कराएगा।
मुद्दतों तक पढ़ाया सर-ए-राहगुज़र पे हूं जाने किधर जाऊंगा,
पढ़ाया और सिखाया तो बहुत कुछ लेकिन भूल कैसे पाऊंगा।
अ से ज्ञ तक का पाठ सीखा है उनसे यूं ही दूरी न कराए जा,
नफ़ी है अभी खुद में जहालत से उस्ताद तिलिस्म दिखाए जा।
वक़ार जिसको नहीं मालूम उससे क्या ही उम्मीद किया जाए,
लाख गिराए कोई ऐसे राह में संभल के चलना सिखाया जाए।
'शागिर्द'-ए-ख़स्ता-हाल को सियासत अपने जैसा तू बनाए जा,
हमनें गुरु से सीखा है थक के दम न ले बस कदम बढ़ाए जा।-
मैं उन हवाओं से दहशतंगेज़ के आगे हार गया हूं,
झूठी खबरों से तसव्वुर में ही जीना सीख गया हूं।
भूख के थप्पड़ से मिट्टी के पैर चबाना सिख गया हूं,
छिले हुए घायल पाँवों से पार पाना सिख गया हूं।
नेता हमसे और मैं धोखा-धडी ज्ञान से सिख गया हूं,
उनसे चेहरे पे इक और चेहरा पहनना सिख गया हूं।
बाजारों में बिक रहे है नए चेहरे कुछ पैसे खर्चने से,
कब तक आखें चुराता मैं मुंह छुपाना सिख गया हूं।
देखो सरकार के कहने से आत्मनिर्भर भी बन गया हूं,
ख़ुद ही बीमार और दवा-ज़मीन ढूढ़ना सिख गया हूं।
मैं उन्नीस का होकर उम्र से पहले कितना सिख गया हूं,
निखरना था कविताओं से अब अखरना सिख गया हूं।-
हमारे दिल से एक आह ! सदा निकली है
ओ मेरे अल्लाह ! ये कैसी वबा निकली है
हर इक मंज़र जो आँखों को रुला जाए
गुनाहों की हमारी, ये कैसी सज़ा निकली है
खो रहे हैं हम, इक - इक करके अपने को
जाने कैसी ज़िंदगी की, क़ज़ा निकली है
ज़र्ज़र सा सफ़ीना लिए, हर फ़र्द पशेमां है
मौला मेरे मौला! तेरी कैसी रज़ा निकली है
बशर का काम गुस्ताख़ी, मुआफ़ करदे हमें अल्लाह
हाँ मालूम नेकियों से ज़्यादा हमारी ख़ता निकली है
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कुछ साँस जिंदगी की बस कहानियाँ बन के रह गईं।
वो चले गये तो क्या कहानियाँ तो उनकी रह गईं।।-
फिरदोश को धुप जला रहीं थी,
बादल को भी प्यार फिरदोश से बेशुमार
वो बरस पड़ा ऐसे जैसे सारी संपत्ति लुटानी हो
बादल बरस गए फिरदोश भीग गए,
आखिर धुप की फिरदोश से मुलाकात हो ना लाज़मी था
बेबश बादल अपना सब लुटाए,क्या कर लेते
फिरदोश की सांसे सिमट रहीं थी , बादल की जान जाती रहीं..... बादल की जान जाती रहीं.....
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ये दुनिया इतनी छोटी भी नहीं...
कि तुम्हारे दुःख इसमें समा ना पाएं,
हर आती सांस एक उम्मीद ही तो है;
मुश्किलें कभी इंसान से बढ़कर नहीं,
और जानां...
ज़िन्दगी से बढ़कर और कोई शै नहीं!-
डर का माहौल है, पर डरना नहीं है,
खुद को मजबूती दे, थमना नही है।
आंसू को रोक ले, दूसरों को सहारा दे,
जितना कर सकता है, उतना तो इशारा दे।
मुंह को ढक ले, हाथों को धो,
बिना काम के ना घूमों फिरो।
बाहर है बीमारी, एक महामारी,
खुद को बचाओ, और अपवाहों से बचो,
खुद को बस रोक ले, थोड़ा सा टोक ले,
तू ही कर सकता है इसको खतम।
रोकथाम बस करनी है,साफ सफाई रखनी है,
छोटा सा काम है, मिलकर करेंगे हम।-
No entry at puja pandel for man.
bcoz fill up covid-19.
No more gap for man.-