उन रातों की खामोशियों ने ही , मेरी चीख सुनी हैं ।
मेरी बुराईयां ही , मेरी अच्छाइयों का दर्द जानती हैं ।
मेरे अकड़ने की वजह , मेरे डर से सिहरन जानती हैं ।
मेरे बौखलाते लफ्ज़ ही , मेरे दिल की चुभन जानती हैं ।
मेरी अनकही कलम ही , मेरी असलीयत जानती हैं ।
मेरी ज़िंदादिली ही , मेरा कतरा–कतरा मरना जानती हैं ।
मेरे मुस्कुराहट के मोती ही , मेरे दर्द का सागर जानती हैं ।
मेरे नफ़रत–ए–बाज़ार , मेरे एक खुशी की कीमत जानती हैं ।
उन रातों की खामोशियों ने ही , मेरी चीख सुनी हैं ।
मेरी बुराईयां ही , मेरी अच्छाइयों का दर्द जानती हैं ।
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