जब भी तुम अकेले हो, उन एकांत के क्षणों को सौभाग्य मानो, उनका उपयोग करो, उनमें रमो। धीरे—धीरे रस आएगा, स्वाद जमेगा। शुरू—शुरू तो बड़ी बेचैनी होगी, जी घबड़ाएगा और फिर धीरे-धीरे निकल पड़ोगे उस अदृश्य सत्य को ढूंढने जहां से ऐसी चेतना विकसित हुई। जो थोड़ा सा जागा होता है वो इसी एकांत के माध्यम से प्रकृति का प्रेमी हो जाता है और निकल पड़ता है सत्य की यात्रा पर, मौन की यात्रा पर, अंनत की यात्रा पर। और फिर दुनिया में उनको अलग अलग नाम मिल जाता हैं किसी को कवि तो किसी को चित्रकार, कोई शायर, कोई लेखक, कोई तुलसी दास।
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"विचित्र चित्रकार"
वो विचित्र चित्रकार है,
जो नयनों की कमान से, ख्वाब है उकेरती,
विचित्र चित्रकार है।
इंद्रधनुषी रंगो को, है चित्र में बिखेरती।
उड़ेल मन की आशाएं, चित्र को संवारती।
विचित्र चित्रकार है।
धरा, गगन क्या चित्र में, ब्रह्माण्ड को पुकारती,
अखंड ज्वाला सी बन, कभी भुजंग सी फुंकारती।
विचित्र चित्रकार है।
लाल रंग सूर्य से, हरा मिला वृक्ष से,
नील अम्बर दिये, उज्वला चन्द्र से।
मिलाप सारे वर्णों का, मिला ऐसा स्वरूप है।
चित्र ये विचित्र है।
विचित्र चित्रकार है।
हृदय के किनार में, ये कैसा गुंबार है।
सिंह सी दहाड़ तू, काल की हुंकार है।
विचित्र चित्रकार है।
वो विचित्र चित्रकार है।-
मौसम ने क्या करवट ली है, कलाकार को बांधे कोई है,
ना चित्रकार के हाथ में ब्रश है, और ना शायर की क़लम उठी है......-
जीवन में तकलीफ उसी को आती है जो ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार रहते हैं.. और ज़िम्मेदारी लेने वाले कभी हारते नहीं, या तो जीतते हैं या सीखते हैं’-
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चित्रकला
एक ही चित्र को मैने दो रंगो से है बनाया , जो दिखा उसे चित्र मे उतार दो हर बारिकी का खयाल रखो और रंगो से निखार दो
चित्रकला सरल नही हैं कार्य, मेरा (चित्रकार) जीवन है इसी मे समाया २ मिनिट की चित्र के पीछे २ साल का मेहनत है मैने लगाया जो किसी को नजर नही आया, सब को लगा चित्रकाला जन्म से हैं मुझ मे समाया मगर ये सच नहीं ये मैने सब को समझाया, मैने सब से चित्र बनवाया चित्र बनाकर सब बड़ा पछताय बोले ये नही सरल कार्य ये सब से न हो पाए,
फिर मैने सब को समझाया सरल कुछ नही इस दुनिया में बस अभ्यास की जरूरत है प्रयास की जरूरत है, वक्त के साथ थोड़ी सी निखार की जरूरत हैं।-
*चित्र कार हूँ*
चित्रकार हूँ
हर भाव को जानती हूँ
छुपा हुआ राज़ भी पहचानती हूँ
चित्रकार हूँ
हर चरित्र के प्रदर्शन को जानती हूँ
हर रूप के आकर्षण को जानती हूँ
चित्रकार हूँ
मेरा अलग दृष्टिकोण है
हर एक रचना अनमोल है-
तस्वीर बनाऊ मै तेरी,
या तुझपे लिखूं कोई कविता,
रंगो से निखारू मै तुझको,
या छंदो में सवारु तेरी सुंदरता
जुल्फें तेरी रेशम जैसी,
नैनो में तेरी मोहकता,
मधुशाला सी नशा उसमे,
होठ भी तेरी पंखुड़ियों सी लगे,
बाते तेरी ग़ज़ल जैसी,
मधुबन सी तेरी सांसे मैहके,
बाहों में तेरी कमल सी कोमलता,
चेहरे में तेरी चांदनी सी चमक,
हिरनों जैसी तुझमें चंचलता,
रंगों छंदों में क्या सावरू,
जब कुदरत ने निखारी हो तेरी सुंदरता।।-
#rangsaaz
सुना है वो रंगसाज़ हो तुम,
जो कोरे पन्नों में भी जान भर देती हो।
मेरी जिंदगी तो पूरी कोरी किताब है,
इसमें भी जरा रंग भर दो।-
*चित्र आधारित कविता*
ये जो माँ के चेहरे पर टेढ़ी मेढ़ी समान्तर लकीरें हैं ये सब लकीरें नहीं रात्रि में मुझे सुनाई हुई लोरिया हैं ।
ये लोरिया वेदना खुशी दर्द त्याग बलिदान की आकृतियाँ हैं जो झुरियों की आकृति मे उभर आई हैं ।
इन्हें गाया गया हैं मेरे लिए और मेरे लिए ये किसी वादक का राग और धुनें हैं मैं जब भी इन्हें देखता हूँ बचपन के गीत आते हैं माँ का प्यार, दुलार याद आता हैं ।
मुझे रात पसंद नहीं है मुझे संगीत और माँ पसन्द हैं ये रेखाएं माँ के चेहरे को और भी सुन्दर बनाती हैं ये किसी चित्रकार की मनमोहक रचना है और रचनाएं सुन्दरता को और विकसित करती है ।
मैं माँ की रचना हूँ और वो मेरी सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हैं ।
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Trasunga mai tujhe apne shabdon se
Mai koi kalakar nahi ki teri chitrakari kar saku-