*आरामगाह*
मैं उलझनों से थक गया हूँ,
तेरे काँधे पर सर रखकर सोना चाहता हूँ।
एक समन्दर इन आँखों में दफन कर रखा है कब से,
मैं तेरी बाँहो में रोना चाहता हूँ।।
तू लड़का है, लड़के भले कोई रोते हैं,
कई बातें दिल में छुपाए ये खुलीं आँखों से सोते हैं,
सजल नेत्र पुरुषार्थ की निशानी नहीं हैं,
ये समाज नियमों में बँधा हैं,
लेकिन इसे तुझसें कोई परेशानीं नहीं हैं,
मैं दुनिया के झूठें ढकोसलों के आग़े,
तेरी सच्चाई का बिछौना चाहता हूँ।
एक समन्दर इन आँखों में दफन कर रखा है कब सें,
मैं तेरी बाँहो में रोना चाहता हूँ।।
दिन में मुस्कुराहट के दीप जलाकर,
रात में उदासी का कम्बल ओढ़ता हूँ,
मैं औरों के सामने बन जाता हूँ मज़बूत,
मैं तेरे सामने हँसता,बोलता,मुस्कुराता हूँ,
क्यों किसी की परवाह करें हम,
जैसी मर्ज़ी वैसे जिए हम,
ताल्लुक़ लोगों से कम रखता हूँ,
बस तेरा ही,हाँ तेरा ही होना चाहता हूँ।
एक समन्दर इन आँखों में दफन कर रखा है कब,
मैं तेरी बाँहो में रोना चाहता हूँ।।
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