Mamtansh Ajit   (ममतांश अजीत)
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थोड़ा सा कुछ टूटा फूटा कच्चा पक्का सा लिख लेता हूँ ।
Insta- mamtansh_ajit
Fb-Mamtansh Ajit
Joined 22 October 2017


थोड़ा सा कुछ टूटा फूटा कच्चा पक्का सा लिख लेता हूँ ।
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Joined 22 October 2017
10 SEP AT 14:48

*चुंबित केश*

बालों का पुंज तुम्हारे गालों को चुंबित कर रहा है,
तस्वीर बहुत ख़ूबसूरत लग रही है,
लेकिन उदासी कहीं से दिख रही है मुझें,
अगर ये मेरा वहम है तो अच्छा है।
किसी ने तुम्हारे सर पर हाथ फेरा होगा,
उड़ आई होंगी ये ज़ुल्फ़ें,
लेकिन अदा मुस्कुराहट की,
नहीं आ पाई है,
या तो मेरी याद आई होगी,
या फ़िर तुम मुस्कुरा दी हों,
झूठा ही,
दूसरे के हाथ का स्पर्श का मान रखने के लिए।

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2 SEP AT 16:42

कह जाता है बहता काजल,
घिर आएँ हैं जो बादल बरस जाएँगे,
ज़मीन की विरह तो घटा के साथ चली जाएगी,
शेष रह जाएगा नैनों का जल,
खींची रह जाएगी लीक,
रूख़सारों पर अपूर्ण प्रीत की।

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26 AUG AT 14:58

*अभी बहुत “वक़्त”हैं।*

एक वक़्त के बाद सपना
हक़ीक़त होता है।
एक वक़्त के बाद अपना
पराया होता है।

एक वक़्त के बाद क़ीमत
शून्य हो जाती है।
एक वक़्त के बाद आवाज़ें
मौन हो जाती है।

एक वक़्त के बाद संबंध
पैसा हो जाता है।
एक वक़्त के बाद आदमी
बुरा हो जाता है।

एक वक़्त के बाद सच
झूठ हो जाता है।
एक वक़्त के बाद पूरा
आधा हो जाता है।

एक वक़्त के बाद साँसें
उधारी हो जाती है।
एक वक़्त के बाद बातें
मसख़री हो जाती है।

एक वक़्त के बाद इंसान
मर जाता है।
एक वक़्त के बाद पानी
बुलबुला हो जाता है।

एक वक़्त के बाद
वक़्त नहीं रहता।
एक वक़्त के बाद पेड़
राख़ हो जाता है।

एक वक़्त के बाद कहानी
कविता हो जाती है।
एक वक़्त के बाद पात्र
पंक्तियाँ हो जाती है।

- शेष अनुशीर्षक में

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24 AUG AT 12:12

*दो युगल पैर*

निविड अंधकार में भी एक दीप जला रहें,
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।

एक रोज़ ऐसे ही सड़क पर चलते दिख जाऊँ,
फ़िर उदासियों के मौसम में याद आऊँ तुम्हें,
एक तरफ़ बरसती रहें बारिशें,
एक आँख का पोर तुम्हारा भी गीला बना रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।।

ज़्यादा लंबा सफ़र नहीं रहा हमारा तुम्हारा,
दो क़दम तुम्हारे और दो क़दम मेरे,
नाप लिया था धरती और आसमान सारा,
दो युगल पैरों का साथ किसी और के लिए भी बना रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।

रहना ज़रूरी नहीं होता,
रूक जाना ज़रूरी होता हैं,
प्रेम तेरे दिल में रहें या मेरे दिल में,
बस प्रेम दोनों दिलों में रूका रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।।

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22 AUG AT 20:04

*दो युगल पैर*

निविड अंधकार में भी एक दीप जला रहें,
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।

एक रोज़ ऐसे ही सड़क पर चलते दिख जाऊँ,
फ़िर उदासियों के मौसम में याद आऊँ तुम्हें,
एक तरफ़ बरसती रहें बारिशें,
एक आँख का पोर तुम्हारा भी गीला बना रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।।

ज़्यादा लंबा सफ़र नहीं रहा हमारा तुम्हारा,
दो क़दम तुम्हारे और दो क़दम मेरे,
नाप लिया था धरती और आसमान सारा,
दो युगल पैरों का साथ किसी और के लिए भी बना रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।

रहना ज़रूरी नहीं होता,
रूक जाना ज़रूरी होता हैं,
प्रेम तेरे दिल में रहें या मेरे दिल में,
बस प्रेम दोनों दिलों में रूका रहें।
मैं न रहूँ पास में फ़िर भी प्रेम बना रहें।।

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11 AUG AT 15:26

*उदासी का रंग पीला होता है।*

क्या तुम्हें पता है कि
टूटे हुए या धीरे धीरे अलग हो रहे पत्तों का रंग पीला होता है।
वैसे ही एक रोग ग्रस्त आदमी की त्वचा का भी रंग पीला होता है।

जो उभर कर आता हैं,
और ख़ुलेआम दिख जाता हैं,
उसका रंग पीला होता हैं,
यूँ कह लो,
उदासी का रंग पीला होता है।

आदमी और वृक्ष जब बड़े हो जाते हैं,
उनके जो भाव नहीं दिखने चाहिए
लेकिन दिख जाते हैं,
पीला सबसे ज़्यादा चमकता है,
इसलिए वो दिखता पहले हैं,
बाद में महसूस।

फूलों का भी तो रंग पीला होता हैं,
क्योंकि उन्हें पता है,
वो तोड़ लिए जाएँगे,
थोड़ी देर में।

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7 AUG AT 19:04

*शायद….*

ये जों संजीदगी आई है मिज़ाज में,
कभी नहीं थी मेरे आस पास में।

एक रोज़ मैं उम्र के पहाड़ पर चढ़ गया था,
और फ़िर मेरा अंदर का बचपना,
पता नहीं कब मर गया था,
ज्यों ज्यों ये उमर चढ़ रही है ऊपर,
उदासी की चादर भी चढ़ रही है परत दर परत।

ऐसा नहीं हैं कि बहुत दु:ख़ है जीवन में,
पर अब मन नहीं लगता बचपने के भवन में,
शायद मैं रखकर भूल गया हूँ इसे कहीं,
और ढूँढता भी नहीं कि मिल ही जाएँ कहीं।

मालूम है मुझें जो महफ़िले मैं सजाता था,
हर कोई मुझसें ही मिलने आता था,
लेकिन ठहाकें मेरी बोलीं के,
अब नहीं गूँजेंगे,
क्योंकि जो पहाड़ मैं चढ़ रहा हूँ,
वहाँ नहीं है कोई कोना,
कि जिसपर रखा हो मेरा बचपन,
मेरी अपरिपक्वता मैं वापिस ले आऊँ।

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29 JUL AT 13:27

*युग्मन*

शुरू कहाँ से करें,
सब तो ख़ामियाँ हैं तुममें,
और हैं सभी बुराईयाँ ।
एक एक करकें लोगों ने इस सूची को बड़ा कर दिया,
सूची में पूर्ण विराम न लगाकर,
इसे अल्प विराम पर लाकर छोड़ दिया,
और बोला अभी इसमें और बुराईयाँ जुड़ेगीं।

और अंत में मैं खड़ा रहा अपनी अनंत बुराईयों के साथ,
अब मैं बहुत बुरा साबित हो चुका हूँ,
यहीं तो चाहते तो तुम लोग।

अब सुनों मेरा भी,
मैं आत्ममुग्धित आदमी तुम सबकों सलाह देता हूँ,
दूर रहों मुझसें,
ख़ुद भी सलाह लेता हूँ कि दूर रहूँगा तुमसें,
अगर कभी मुझमें कोई अच्छाई दिखी तो,
बुला लूँगा मैं तुम लोगों को।

हाँ मुझें प्यार है ख़ुद से और अपनी बुराईयों से,
ख़ुद को बुरा कहना भी,
एक अच्छाई है न!
तुममें हिम्मत है क्या?
ख़ुद को बहुत बुरा कहने की,
बोलों….

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20 JUL AT 11:08

*प्रेम पुष्प*

तुम्हें कोई फूल दे तो,
मत देना उसे वापिस फूल,
तुम उस फूल से लगाना,
एक पौधा।
जो उम्मीद देगा किसी और को कि,
अबकी बार मैंने इसे प्रेम दिया तो,
वो लौटाएगा मुझे प्रेम के बदले प्रेम।

उम्मीदें जीवन देती हैं,
फूल देता है किसी नए प्रेम को जीवन।

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10 JUL AT 10:34

यूँ बरस रहें हैं मेघ रात से,
जैसे बचपन देख रहा हों खिड़कियों के उस पार,
कोई याद पुरानी दिख गई हैं शायद।

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