इरादे तेरे ग़ैर ना सही मगर जज़्बात भी तो तेरे फ़रेब थे,
जुबां मे तेरे गुल है और नजर में तेरे पूर-फ़रेब दिखे....
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हू मै शायर,... read more
ग़ैरत-ए-नज़्म में तेरे अल्फ़ाज ही तो कम थे,
हम ज़मी पे नम थे और तुम आसमां गुम थे...🖤🥀-
"तुम जख़्म पे मेरे
"नमक"
सा मरहम लगा रहे थे,
और हम हँसकर अपने दर्द को
"तुमसे"
बड़े प्यार से छुपा रहे थे",, 🥀🥀-
कागज़ भी कोरा था और जज़्बात भी,,
मेरा सफ़र भी अधुरा था और तेरा साथ भी .. 🥀-
काबिलियत ए इश्क में अरदास किए फिरते हैं,
मुक्कमल ए मोहब्बत में सवाल लिए फिरते हैं,,
जश्न ए महफ़िले तमाम होती है,
मोहब्बत के खेल में,,
कोई सवाल लिए फिरते हैं,
तो कोई जवाब लिए फिरते हैं,,-
टूटे हुए जज़्बात को यूं खोजते हैं हम,
अपनी ही जिंदगी के उन बेहिसाब पन्नो में,,-
अरबाब-ए-वफ़ा तू मिरे दर्द में ठहर जाना,
वाकिफ हूं तिरे मिजाज से तू मिरे जज़्बात से खेल जाना.....-
जज़्बात ही तो है जो करीब लाते हैं
ये दोस्त ही तो है जो ताउम्र साथ निभातें है....❤️❤️-
वो सूखा हुआ सुर्ख लाल गुलाब
अब भी कही ताज़ा है....
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