मोहब्बत के शोर की जगह
मुझे उसकी नफरत में सुकून मिला-
न तारे न चाँद न उनका आसमां चाहिए
मुझको तो बस मेरी मोहब्बत की सलामती चाहिये-
मिठास ज्यादा हो तो मुँह लग जाता है,
मे तेरे करीब आती हूँ तो ये चाँद रूठ सा जाता है..!!!-
पन्ने पर ग़ज़ल तो संवर जाएगी
मगर उसमें तेरी कमी नज़र आएगी ।
मना लूँ केसे अब में खुदा को दोबारा
आखिर मेरी शख्यियत बिखर जाएगी।
जानकर नहीं गिनता में तारे रातों को जानता हूँ
तू फिर चाँद में निखर आएगी।
मसला है किं हर साँस तुझसे जुडी है
जान तुझसे जुदा होकर किधर जाएगी।
खैर, अब में भी कोई बैर नहीं रखता,
खामखा तुझसे मेरी बात बिगड़ जाएगी।-
चाहते तो हम भी उसे एक ज़माने से थे,
मगर चांद कब इंसानों का हुआ है।-
मैं पुरे से ज़रा सी कम हूँ,
मगर इतनी की पूरे की ज़रूरत
पूरी तरह से ना ही महसूस हो।
मेरी शुभ्रता, परिचय है मेरे धैर्य का।
मेरा आकार, प्रमाण, मेरी शून्यता का।
मैं सब नहीं हो कर भी बहुत कुछ हूँ
मैं बहुत कुछ हो कर भी सब नहीं हूँ।
मैं चाँद हूँ एकादशी का
और तूम चतुर्थी का चाँद हो।
पूजा होगी, तुम्हारी और मेरी,
व्रत भी, तुम्हारे और मेरे।
हम साथ हो कर पूनम हो सकते थे।
व्रत व पूजा हो सकती थी हमारी भी।
मगर तुम्हें मंज़ूर नहीं अपना पक्ष बदलना,
और मुझे मंज़ूर नहीं अपना पक्ष बदलना।
-सुप्रिया मिश्र-
सुनो न...
थी तम्मना साथ उनकी गुफ्तगू हो इश्क़ की
मगर शब ए वस्ल चांद से मेरा झगड़ा हो गया..
मुक़द्दस इश्क़ मुकम्मल ना हुआ मेरे नसीब में
उनसे इश्क़ करते तो इक ज़माना हो गया..
दिल में जश्न-ए-तरब चराग़ाँ नहीं होता
अब बेज़ुबान इश्क़ मेरा मुझसे रुठ कर बेवफ़ा हो गया..
उफ्फ़ मुझसे ये कौन सा जुर्म क्या सितम हो गया..
सारी ख्वाहिशें दफ़न हो गई मेरी
और हिज्र वाली रात मेरा चांद मुझसे खफ़ा हो गया..
❤️❤️❤️-
सुनो न...
मेरी महफ़िल में आकर रौनक बढ़ाने वाले...
क्या तुम मेरे कोरे लफ़्ज़ों के अल्फ़ाज़ बनोगे।
मेरे एक आंसू पर पूरी कायनात बदलने वाले...
क्या तुम ताउम्र मेरी खुशीयों की वज़ह बनोगे।
मैं तो फना हो जाऊं तुम्हारी इक झलक देखकर...
क्या तुम मेरे करवा चौठ का चांद बनोगे।
अज़ल से कर रही मेरी रूह इंतजार-ए-इश्क़ कि...
सुनो न...
क्या तुम मेरी मांग अपने इश्क़ से सिंदूरी करोगे।
❤️❤️❤️-
ज़मीं पर रह कर आसमां छू लेती हूं
में अपना प्यार चांद में जी लेती हूं।-