उपवास को बुन्देलखंडी version
पति-. का बात है आज अपने लाने रोटी नई बनायीं का..? जो रस अकेलो काये पी रईं.?
पत्नी, - आज हमाओ उपास है न..
पति-तो कछु खाओ के उसई भूखी हो.. कछु खा लेतीं?
पत्नी- हओ तनक फलाहार कर लओ. .
4-5 केला
2 अनार
3-4 सेवफल
हलुआ , साबुदान की खिचड़ी, सिंगाड़ा की पूड़ी बस लओ है..
भुन्सारे 1 गिलास दूध और
दो कप चाय पी लई हती..
अब जौ मुसंबी को रस पी रये..
आज ऊपास है न, सो कछु और नईं खा सकत..
पति- तनक रबड़ी अबड़ी और ले लेतीं..
पत्नी -हओ रात के ब्यारी के बाद रबड़ी खाबी .. खाना एकइ टेम खा सकत..
पति- भोतइ कठिन उपास है तुमाओ..
कोउ को बाप नइँ कर सकत ऐसो कठिन उपास..
देखियो.. कमजोरी न आ जाये तुमें..
पत्नी-जई से तो बीच बीच में
बदाम काजू फांक रये..
पति- फिर भी.. ख्याल रखियो अपनों..!
😜😜😜😜😜😜😜😜-
चन्द अस'आर
जिसको भी जाना है, उसने क्या आना देखा,
जिसने देखा मंज़र, उसने क्या शाना देखा।
नादाँ था यार जमीं पे जो मरहम मलता था,
दोज़ख में जख्मों की ख़ातिर मैख़ाना देखा।
उल्फ़त क्या होती है, लैला मजनू से जाना,
वरना आलम में हमने बाबू सोना देखा।
हमने जाना "यारा" दोज़ख़ का ज़ुल्म भला,
पर इस आलम से ज्यादा ज़ुल्म कहीं ना देखा।-
चन्द अस'आर
मुहब्बत में कभी कोई मेरे भी दौर से गुज़रे,
अज़ीयत ही अज़ीयत है, मुसाफ़िर ग़ौर से गुज़रे।
मुसाफ़त इश्क़ का है, ये नसीहत दे उसे कोई,
अग़र यकता नहीं है वो, कहो फिर और से गुज़रे।
उसे कोई बताओ बेतवा जैसी नहीं है वो,
सफ़ीना गोमती में है, ज़रा वो तौर से गुज़रे।
अग़र मसला बड़े यारा सुलह कर लो मुआफ़ी में,
भला ये कौन चाहेगा, मुहब्बत जौर से गुज़रे।-
$ अपना अहसास&
#Please sing the song
बातों को तू , मेरी जाने ना.......
रातों को तू , मेरी आना ना......
तेरे करीब जो आने लगा हूं ।
खुद को बेगाना समझने लगा हूं।।
वफ़ाओ को तू , मेरी माने ना.......। बातों को तू.............
मेरा दिल जो दुखने लगा है।
काटों को अब अपनाने लगा है।।
लब्जो को तू , मेरी जाने ना.........। बातों को तू..............
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ग़ज़ल
सुनो मैं मकां से निकलने लगा हूँ,
हवा से मुलाकात करने लगा हूँ।
नज़र को मिलाते थे जो शख़्स मुझसे,
मग़र अब उन्ही पे बिगड़ने लगा हूँ।
रहे ग़म भला कब तलक तुम बताओ,
बजह बे बजह क्यों तड़पने लगा हूँ।
गली में गुजरते दिखा ही नहीं था,
न देखा जिसे उससे जलने लगा हूँ।
उजाड़ा मुझे हर कदम ऐ मुहब्बत,
उगा कर गुलिस्तां पनपने लगा हूँ।-
सारा दिन काम में निकल जाता है
सारी रात उसकी याद में निकल जाती है
हम जिंदा हैं जी रहे हैं
बचा हुआ वक्त क्यों जी रहे हैं ये जानने में निकल जाता है-
जब शायरी अच्छी नहीं लगती थी फिर तुम झूठी तारीफ क्यों करती थी
चलो मान लिया मेरी खुशी के लिए झूठी तारीफ करती थी
मगर फिर घंटों बैठकर अपनी सहेलियों को मेरी शायरी क्यों सुनाया करती थी
सच बताना कहीं तुम मुझसे मोहब्बत तो नहीं करती थी-