पहले हि बहुत बोझ था, ज़िन्दगी मैं अधूरे सपनों का,
और अब तुम भी एक सपना बन कर रह गये..!!!-
🌞सुप्रभात🌞 में जब नींद खुली...
और जब हुआ तरो-ताजा मैं...
जिम्मेदारियों का बोझ उठा कर...
खुद को छोड़, भागा मैं...-
अपने अरमानो के जनाजे को खुद ही कंधा दिया है हमने ,
और लोग कहते हैं कि हमें बोझ उठाना ही नहीं आता..!!!!-
मैं चाहती हूँ ,
रिक्त हो जाए
स्मृतिपटल मेरा...!!
.....................
उन्मुक्त हो जाए
हर स्मृति मुझसे
और उन्मुक्त हो जाऊँ मैं
आकाशभर बोझ से ।।-
سن تھک گیا میرا معصوم دل تیری یادوں کا بوجھ اٹھاتے اٹھاتے
خدارا ختم کر دے سزاۓ عشق آکر انہیں بھی اپنے ساتھ لے جا
Sun thak gaya mera masoom dil Teri yado ka bojh uthate uthate
Khudara khatam kar de sazaye ishq aa kar inhe bhi apne sath le ja
✍️رائٹس۔ناعمہ اصلاحی
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जिस्म अपना ही बोझ उठाते थक जाएगा...
सांसो की कश्ती भी डूब जाएगी...
एक दिन ऐसा भी होगा यारों...
यह मिट्टी की हस्ती मिट्टी में मिल जाएगी...-
बोझ तो बहुत है दिल पे,
पर ना जाने क्यों जब वो प्यार से दिल पे हाथ रखती है,
तो दिल हल्का हो जाता है...-
दिल का कोई बोझ पलकों पर उतर आया
पलकें सह न पाई तो अश्कों में बहा दिया ❤-
फ़िक्र में तुम्हारी दिल पर एक बोझ सा रहता है।
ये सैल़ाबे-ए-अश़्क मेरा बस तन्हाई में है बहता।
तेरे अह़सास के बिना मेरी अब़्तर है जिन्द़गानी।
ख़ामोश हुए जब से अब कोई आवाज नहीं देता।
ये ठहर सा गया है मेरे दिल में दर्द का एक दरिया।
मेरा ये इक़बाल अद़म होकर आता है नज़र ढ़हता।
मेरी अब अफ़सुर्दा हुयीं धड़कन सांसों के बिना तेरी।
कोई दिल़कश हस़ीन मंजर मेरा दिल नहीं बहलाता।
मुझे बेमतलब की जिंदगी ये बस बोझनुम़ा लगती।
अब तेरी यादों के सहारे ही मैं बची उम्र हूँ बिताता।
फ़िक्र में तुम्हारी दिल पर एक बोझ सा रहता है।
ये सैल़ाबे- ए-अश़्क मेरा बस तन्हाई में बहता है।
प्रधुम्न प्रकाश शुक्ला
अब़्तर= मूल्यहीन। इक़बाल=सौभाग्य। अद़म=शून्य
अफ़सुर्दा= उदास
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ना मैं दुःखी हूं ना मैं खुश हूं
ना किसी से गिले हैं ना शिकवे हैं
ना किसी का इन्तज़ार हैं ना शिकायतें हैं
ना किसी से उम्मीदें ना ही कोई तरन्नुम हैं
खाली मन रीता दिल ना भाव ना शब्द
अब आप ही बताएं क्या लिखूं ?-