Your ambition should not be ruined by failures!
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Not everything I write is
experienced by me.
I take advantage of
being writer to step into
the shoes of others.-
वे जानते थे
उनकी कविता
उन्हें निवाले नहीं देगी
फिरभी
निवालों की भूख
उन्हें रोक नहीं सकी
कवि बनने से,
कवि से पहले
आदम को ज़रूरी है
निःस्वार्थ बनना।-
ज़िन्दा हूँ, क्योंकि लिखता हूँ
ज़िन्दा रहूँगा, क्योंकि लिख दिया
- साकेत गर्ग 'सागा'-
कुछ अहसास, कुछ जज़्बात
कुछ बिखरे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ
जो खो गया है तुम में, मुझ में कहीं
मैं वो खोये हुये अंदाज़ लिखता हूँ
- साकेत गर्ग-
यह अपनों की हसीन दुनिया, बड़ी ज़ालिम है
मुझे मेरे ही अल्फाज़ के लिये चिढ़ाती है,
वही अल्फ़ाज़..
जिनके लिये बाहरी दुनिया माथे पर बैठाती है,
अपने.. 'उन में'.. मुझे ढूँढते हैं
पराये.. 'उन में'.. ख़ुद को खोजते हैं
जो मरासिम होते हैं पुराने
वो तर्क करने लगते हैं, छेड़ने, घेरने लगते हैं
जो अजनबी अनजाने से होते हैं, वो अपने लगते हैं
हर हर्फ़, हर लफ़्ज़ का दर्द, मायना समझते हैं,
आपके लिखे को ख़ुद का आईना समझते हैं,
ख़ैर छोड़ो..यह तो पुराना दस्तूर है,
जो आज भी चालू बदस्तूर है
मैं तो आवारा सा एक शायर हूँ, कहाँ बाज आऊँगा
सिर्फ़ लिखना ही आता है, 'ग़र नहीं लिखूँगा
गोया के.. मर जाऊँगा
कोई पढ़े ना पढ़े, कोई सुने ना सुने
मैं ख़ुद पढ़ता जाऊँगा, ख़ुद ही सुनता जाऊँगा
दाद भी दूँगा, वाह-वाह करता जाऊँगा
क्या हुआ जो नारसिस्ट कह लाऊँगा
पर अपना दिल और न दुखाऊँगा
फ़क़त एक दिन जब..
मेरा गुल भी "गुलज़ार" हो जायेगा
देखना जो आज मेरा अपना मुझसे चिढ़ता है
वही मेरा सबसे बड़ा अपना
मेरा हबीब, मेरा मुरीद हो जायेगा
- साकेत गर्ग-
एक शायर, कवि या लेखक होने की सबसे बड़ी सज़ा क्या है, तुम्हें पता है?
एक शायर, कवि या लेखक होने की सबसे बड़ी सज़ा है, तुम्हारा प्यार में पड़ना और उस प्यार में पड़कर, उस प्यार को 'अपना सबकुछ' और 'अंतहीन' मान कर, उस प्यार पर कवितायें-शायरी-संस्मरण-लेख लिखना।
यह सज़ा क्यों है? क्योंकि एक दिन वो प्यार केवल 'तुम्हारे दिल में', 'केवल तुम्हारे लिये' ही रह जायेगा, 'अंतहीन' प्यार का 'अंत' हो जायेगा। जिसे तुमने इतना प्यार दिया और जिसने तुमसे इतने वादे किये, एक दिन उनका मन पलटेगा और सब 'ख़त्म' हो जायेगा।
और उसी पल से, ठीक उसी पल से तुम्हारी अपने प्यार में लिखी अपने 'प्रेमी' पर लिखी हर कविता-लेख-शायरी तुम्हें 'ग़म' देगी, तुम्हें दुःख देगी, तुम्हें हर पल रुलायेगी, सतायेगी। तुम्हारा लिखा हर शब्द तुम्हें सब याद दिलायेगा, वो 'प्यार' भी और उनका यूँ चले 'जाना' भी। तुम्हारा 'तन्हा' होना भी। तुम्हारा ख़ुद का लिखा हर शब्द पढ़कर तुम 'ख़ुद ही' अपनी मौत की दुआ माँगोगे। तुम ख़ुद 'ख़ुद का लिखा' पढ़ोगे और आँसू बहाओगे।
तुम अकेले, तुम ख़ुद ही।
ना वो जिस पर कभी तुमने अपनी कलम चलाई थी, ना तुम्हें पढ़ने-सुनने-सरहाने वाले।
- साकेत गर्ग 'सागा'-
सवाब का एक काम आज मैं भी कर आया
सिक्के नहीं थे मेरे पास
एक फ़क़ीर को अपनी 'नज़्म' सुना आया
- साकेत गर्ग 'सागा'-