बारिश की वो पहली बूँद,जब उनका आखिरी पैगाम याद आया।
हमें हमारे बेवफा होने का इल्ज़ाम याद आया।।
हँसी आ गयी मोहब्बत की पुरानी बातें सोचकर,
फिर आँखें भर आईं,जब इश्क करने का अंजाम याद आया।।-
Mere dil me aj phir tumhari baat ho rahi
Mere sahar me aj bin mausam barsaat ho rahi
Or ye barish ki bunde mujhe chu kar
Tumhare maujudagi ka ahsaas dila rahi
Bahut dino baad aj phir tumhari yaad aa rahi-
BARISH ke qatron ki zad se SHAZAR bhi bhige SHAHAR bhi bhige
GULISTAAN-E-SAHER tere TABASSUM-E-GUL-E-SHABNAM ko salam.
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क्यों कहता है तू ये मुझसे के ये बरसात झूठी है।
मुझे लगता है के तेरी तो हर एक बात झूठी है।
तू सोचे कुछ है,कहता कुछ है, करता कुछ है दीवाने
दिन उसका कैसे सच्चा हो?जिसकी हर रात झूठी है।।
✍️राधा_राठौर♂-
इन हवाओं से तेरी कुछ बातें बता रही हूं ...
इन हवाओं से तेरी कुछ बातें बता रही हूं...
आंखें नम है और तेरी कुछ यादें बता रही हूं...
एक संदेशा भेज रही हूं इन हवाओं से मेरे कुछ आंसुओं की बूंदें के साथ भेज रही हूं ....
कभी खत मिले तो समझ लेना कि बारिश में मेरे आंसुओं की बूंदें भी मिलकर शोर मचा रही है...
कुछ इस कदर तुझे बताने की जुर्रत कर रही है...
आज तेरी याद कुछ इस कदर सता रही है...
की हवाएं भी मेरी बात सुन कर कुछ नम से हो गए...
इसलिए अपनी खिड़कियों से थोड़ा नजर बाहर कर देखना...
कि मैं तुझे आज भी किस कदर याद कर बुला रही हूं....-
"बंजर जमीन को बारिश से मोहब्बत हो गई
बस उमड़ते बादल को देखकर राहत हो गई"-
Baarishon ka mausam
Ek baar phir aaraha hai
Tumse milan ka nasha chha
Raha hai
Hamara saath me bhigna
Aur ek dusre me khona
Wo ehsas tadpa raha hai-
इक बरसती शाम हो,
दूजा तुम हाथ थाम लो,
तो क्या बात है!
इक बिजलियों की कड़कड़ाहट हो,
दूजा दो प्याली चाय कड़क हो,
तो क्या बात है!
इक ठण्डी हवाओं का सरसराना हो,
दूजा तेरा लिपट कर थरथराना हो,
तो क्या बात है!
इक खिड़की से दिखता हल्का कोहरा हो,
दूजा तुम मेरी आँखों मे देख मुस्कुरा दो,
तो क्या बात है!
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mohhabat ho or dard na ho,
ye to wahi bat huyi ki barish ho lekin thodi si sard na ho ...-