उत्तर प्रदेश की काशी पवित्रता इसकी रूह हैं
जिस्म इसकी संस्कृति श्रृंगार इसका सुकून हैं
घाटो से संवरती है ये लहरों से निखरती हैं
महादेव के आशीर्वाद से ये नगरी हर पल चमकती हैं-
बनारस के रंग मे रंगना चाहती हूँ,
हाँ मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ
गंगा कि धारा सी बहना चाहती हूँ,
शिव के अंश मे रहना चाहती हूँ
शिव के अंश मे प्रेम चाहती हूँ,
हाँ मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ
अपने हर ज़िक्र मे उसका नाम चाहती हूँ,
अपने अंश मे उसका अंश चाहती हूँ,
हाँ बस, बनारस के रंग मे रंगना चाहती हूँ
मे पार्वती हूँ अपने शिव से मिलना चाहती हूँ-
छद्म श्रृंगारित मैं संपूर्ण बनारस
एक तू ही सत् मणिकर्णिका घाट पिया-
शाम होते ही आसमां पे नज़र
नुकती कर के बैठ गई।
किनारों पे जिस कदर थकी हुई ये
कश्ती आकर बैठ गई।
यूं तो लाज रखता है दुपट्टों से
मगर चांद की ठंडक मै
आज ज़रा ओर करीब आकर बैठ गई।
हया से पलके झुकी थी या कोई
इशारा था, चाय जूठी कर ग्लास
बगल में रख कर बैठ गई।
मुझे नहीं मालूम मतलब ए जिस्म
मणिकर्णिका सी सुकून लिए
वो तो बिंदी लगा कर बैठ गई।-
"मैं इश्क कहूँ, तू बनारस समझे..."
देखें बनारस, एक बार मेरी नजर से...👇
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comment...-
September ki koi Jaise
In Barish si lagati hai,
Aise mausam mai wo,
ishq Banarasiya si lagti hai.
Mehkhane hote hai hargiz
Talab le riwayat si yanha,
Par hume to wo bas,vt ki
Cold coffee si lagati hai.
Zulf sawar,kaano se hata
Kar jhumke dikhaye jab
Haaye kasam se pagali,
Zubaan Urdu si lagati hai.-