मेरे ख़्यालों के कश्मकश की, इक अजीब कहानी है
चलता नहीं मेरा बस उन पर, कुछ ऐसी परेशानी है
कि दिखता नहीं है चेहरे पर, मानो सब ठीक है
मेरी खामोशी के पीछे छिपी, अतीत की चीख है
मेरे अपने सभी जानते हैं, कितना गहरा ये घाव है
किसी चिंगारी से दूर रहना चाहता इक बुझा अलाव है
वक़्त अच्छा बीतता है कुछ यारों के साथ मगर
मेरे कातिलों के लिए भी खुले हुएं हैं उनके दर
उम्मीदों का सिलसिला जाने कब से माटी पलीत है
दबे हुए ज़ख्मों के दर्द से भरा पड़ा मेरा अतीत है
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