Mukesh Dhaka   (दर्शक)
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Joined 24 October 2017


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7 JAN AT 14:08

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6 JAN AT 21:18

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5 JAN AT 22:44

लोहे का ढलना,
सोने का ढलना,
मिट्टी का ढलना,

ढले बिना आकार मुमकिन नहीं...
ढले बिना आराम मुमकिन नहीं...

और हां, दिन भी तो ढलता है,
और खूबसूरत रात बन जाता है,

फिर रात ढलती है,
और शानदार दिन बन जाता है...

तो देख,
कभी ज्यादा कुछ अलग - अलग नहीं है यहां,
बस ढलना ही चलना है यहां..." सुरेश ने निशा को ताकते हुए कहा।

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5 JAN AT 13:21

दिल की दावत पर जज्बात आए है,
खाने को हमें जज्बात आए है,

बिन बुलाए कौन आता है,
बिन बुलाए आए है तो,
लगता होके बर्बाद आए है,

डरते थे कल तक जां खोने से,
वो भी होकर आज आजाद आए है,

अपनी कमाई सोच ही बची जेब आने चार,
लो फिर करने नई शुरुआत आए है,

जहां को जहीन बहुत उम्र कह लिए, हटो,
अब बेवकूफो के सरताज आए है....

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23 JUL 2024 AT 14:03

***
सब जानती है,
खून के आंसू सहेगी,

कमजोरी मोम की तरह है,
इस्तेमाल होकर रहेगी।

***

अंदर से कोई भगाता है
या फिर चमक से बहक जाता है

पतंगा खुद जाता है,
कोई नहीं बुलाता है,
और
जल जाता है।

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22 JUL 2024 AT 11:17


खत्म होंगे सारे
मन के खेल
"""""जय महादेव"""""
बोल कर देख ......

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11 JUL 2024 AT 22:55

शहर में घर है,
घरों में एक घर है,
घर मे कमरे है,
कमरों में एक कमरा है,

अब इससे आगे ना कोई जा पाया है,
ना कोई जान पाया है,

वहां जहन जहान है,
और दीवार खुद से दीदार है,

वहाँ कुछ खिलौने है,
वहां कुछ खोए कौने है,

वहां कपड़े लटते है किवाड़ों के पीछे,
और..
वहां एक शख्स रोज आकर
लिबाज बदल लेता है,
जैसे जज्बात बदल लेता है,

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10 JUL 2024 AT 10:14

पेड़ भी हवा से खुद को बर्बाद कर लेते है,

पत्तियों से खुद को आजाद कर लेते है,

सूरत बिगड़ जाती है,
पेड़ उन्हें अपना नहीं मानता,
बिजिलिया गिरती है,

हालात, यूं हालात पे हालात कर देते है,

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8 JUL 2024 AT 9:32

खुद से खफा कहो,
एक सजा कहो,
आदत, लत, बेबस नशा कहो,


दया के जरिए कुछ पाना.... एक बिखारी की मनोदशा कहो,,,,,

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7 JUL 2024 AT 16:53

ये जो एक दिन है,
यह तुम्हारा मन है।

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