आज मुद्दत बाद ही सही...
मुझे उसका दीदार तो हो पाया...
पर उफ्फ! मेरी बदकिस्मती तो देखो...
मैंने उसको उसके जीवन साथी के साथ पाया...-
दो घर होकर भी उसका सगा कोई नहीं होता
अनाथ का काला टीका माथे पर थोप देते हैं-
मुक़म्मल करनी हैं मोहब्बत की ये दास्तां,
तय करना हैं उसके साथ ही ज़िन्दगी का ये रास्ता,
कमबख्त किस्मत क्यों नहीं समझ रही ये दास्तां,
क्यों ला रही ज़बरन हम दोनों के बीच ये फ़ासला।
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ये जो डरते है वही पीठ पीछे घात करते हैं
जब जेबें भरी हो लोग तभी खैरात करते हैं
बेयकीनी सी है सफर में फिसल जाता हूँ
पर इरादे आज भी तूफानों से बात करते हैं
यहां रुकना कौन चाहता है मंज़िल से पहले
जनाब सबको बेकाबु अपने हालात करते हैं
जाने कितने हादसे कितनी तालीम बाकी है
ये कौन हौसलों को निराशा इजात करते हैं
ऐसी भी क्या रंजिश है मुझसे, तेरी किस्मत
किसी दिन बैठ फुर्सत से मुलाकात करते हैं
कमाल है, मेरी राय मुझे धोखा दे जाती हैं
दिलो दिमाग आपस में जात-पात करते हैं
हर रोज दर-ब-दर फिर से एक और सफर
चल 'कपिल' फिर से नयी शुरुआत करते हैं-
अगर रूठ जाऊं मैं
तो कोई मनाने भी नहीं आएगा
हाँ, बदकिस्मती के इसी दौर से
गुजर रही हूँ मैं।
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थी उन की बेरुख़ी या बदकिस्मती मेरी,
दरिया में डूब कर मैं प्यासा ही रह गया।-
Badkismati se kismat humari hai
Jo kismat me humare, woh hasi pal kar gaye
Khud to ho liye kisi aur ke ssath
Hume apne hi dil me dafan kar gaye
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यूं मेरी मजबूरियो को मेरी बदकिस्मती मत समझना
क्योंकि हम उन राहो से भी गुजरे है जहां किस्मत तो क्या साया भी साथ नहीं देता-
अनाथ करके कहते हैं अपनें हो आप,
कभी नजर का काला टीका भी कलंक लगने लगता है
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