पिता
एक स्तंभ हो आप,
एक विश्वास हो आप,
आपसे हैं अस्तित्व मेरा,
पिता ये नाम हो आप।-
हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं रिश्तों के कुरूक्षेत्र में अपने आपसे लड़ती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी हमारे मन की गाँठ को खोल कर पढ़ो।
मैं तुम्हारे साथ जी उठती हूँ, महक उठती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
माना कभी आपके साथ नहीं रहती पर
हर लम्हा आपका साया बन रहती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
मैं अपने जीवन के सपने आपके साथ देखती हूँ
और उसे प्यार से खुशियो से सजो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
खुद कि तकलीफ खुद ही सह लेती हूँ।
अपने सपनो को दूसरे की ख़ुशी के लिए तोड़ देती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।
कभी-कभी जब बहुत दु:खी होती हूँ,
और खुश होती हूँ तो जी भर के रो लेती हूँ।
हाँ मैं स्त्री हूँ।-
न मैं पूज्य हूँ,
🍁
न ही मैं किसी के,
चरणों की धूल हूँ !
🍁
मैं मात्र स्त्री हूँ !!-
मेरी मांग से लेकर
पाव की उंगली तक
मैं जकड़ दी गयी हूँ ...
और .....
वो कहा करते है
सोलह सिंगार तुम पर
जचते बहुत हैं ...
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ऐ ज़िन्दगी,
अब बस भी कर !
💔
जो मैंने,
मान ली हार !
💔
तो अस्तित्व,
तुम्हारा भी नहीं है यार !-
मैं कवियत्री हूँ,
मुझे समझना,
इतना भी,
आसान नहीं !
❣️
मेरे अर्थ ही,
अनेक है,
तुम्हारा उलझना,
ठीक नहीं !!-
क्यूं धड़कने इतनी बढ़ रही, क्यूं शमा जल रही हैं,
एक धागे की रोशनी खातिर, मोम क्यूं पिघल रही हैं;
क्यूं इतना शोर वहां, यहां क्यूं तन्हाई गुजर रही हैं,
पत्थर की एक चोट से, क्यूं शीशे का अस्तित्व बिखर रही हैं ।
🖋️🖋️🖋️ Kumar Anurag-
बिखरा के,
रख दिये !
मैंने अपने,
किरदार !
सारे के सारे,
यार !
किसी एक,
में भी मुझे !
मेरा अस्तिव,
यार !
नहीं मिला,
अब तक !!-
मेरे अस्तित्व की सिलवटों के बीच झाँकती अरमानों की ख़लिश शनै-शनै मुझे बुझाने लगी है इनदिनों...
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