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6 MAY 2021 AT 19:47

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5 APR 2021 AT 22:44

थोड़ा इन्तज़ार और सही

तीन घंटे से लंबी कतार में, बस ये कह कर आगे बढ़ती
कि थोड़ा इन्तज़ार और सही।
पर कोसते ज़ुबाँ सब्र को पहचानते नहीं।
कोई कहता- चुनाव में जुमलेबाजी करने वाले आज लापता है।
तो कोई कहता- अब अधिकारी हमारे हालात नहीं, जेब की गर्मी देखते है।

और दूसरी तरफ अधिकारियों का कहना था-
मौसम के ताप का शिकार हुए है हम
गर्मी जेब में नहीं, हमारे दुखते-जलते पैरों में है।
गली-गली जा कर, लोगों की तानों की आग में पहले दिल फिर बदन जला कर,
दौड़-भाग से पैरों तक झुलसते है और फिर जब घर लौटे
तो जलता हुआ बिस्तर आराम नहीं, बेचैन दौड़ती सोच देता है।

बरसात ने इस बार नाराज़गी दिखाई थी।
झरनों और सैलाब ने गुम होना बेहतर समझा।
अधिकारी बरसात की उम्मीद में डूबे थे
और आम जनता जल विभाग को कोसते रहते।

पर ग़लती किसकी है? क्या इल्ज़ाम थोपना इतना ज़रूरी है?
शिकायतों का अम्बार लगना वाजिब है।
पर आख़िर ये शिकायत है किससे?
काश! इन्तज़ाम ऐसे कर पाते अपने घरों पर
कि हर साल बरसात का थोड़ा सा पानी बचा लेते
तो आज न परेशानी होती, न शिकायत,
न इल्ज़ाम होते, न लम्बी कतार और न खाली बर्तनों संग इन्तज़ार।

आने वाला कल जब हमें बंजर कर जायेगा
तब किसे क़सूरवार ठहराएंगे, कुदरत से लड़ पाएंगे?

खैर! सोच के इस उथल-पुथल में जब मेरी बारी आयी
तो नल ने मुँह बन्द कर लिया और मैंने फिर ख़ुद से कहा- थोड़ा इन्तज़ार और सही। (गीतिका चलाल) @geetikachalal04

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26 JUL 2021 AT 20:48

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25 MAY 2019 AT 20:49

Life and death are the two aspects which acts as two sides of a coin and the relationship between two is very vast that we never understand....

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15 FEB 2019 AT 0:07

Pulwama Attack
The Black Day for India

(Read full in caption)

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8 JUL 2021 AT 10:38

हाँ,
उसे पाना हमारा अधिकार भी है
और
उसे देना हमारे ऊपर निर्भर भी
मानो
संविधान का वो अनुच्छेद
जो मौलिक अधिकार में भी शामिल
और
राज्य के नीति निर्देशक तत्व में भी
हाँ,
वो 'प्रेम' है

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20 JUL 2020 AT 18:51

"तुम यथार्थ हो या मृषा,स्तब्ध हूं वास्तविकता को स्वीकार करने में,ऐसा प्रतीत होता है कि तुम पास हो परन्तु एक आभासी प्रतिबिंब की तरह जिसका केवल भान मात्र किया का सकता है। कभी कभी तो अन्तर्मन में ऐसी असाधारण सी तीव्र इच्छा का उद्गम होता है कि तुमसे आलिंगन कर लूं ,फिर आभास होता है कि तुम तो स्पर्श से परे हो तुम्हारा केवल अनुभव मात्र ही संभव है।
फिर मन को यह कह के संतुष्ट करना पड़ता है कि तुम तो अगम्य हो अगोचर हो तुम्हारी स्मृति मात्र ही मन की शांति का मार्ग है।"

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21 JAN 2021 AT 11:02

*content is long so can skip right now but once you jump to reading skipping is not allowed.

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24 APR 2019 AT 14:09

The beauty of relationships
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20 APR 2021 AT 13:58

(आलेख कैप्शन में पढ़ें)

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