कुछ ऐसा लिखने की चाहत है, जो जिस्मानी न हो...
जिस से शायद बयाँ कर सकूँ तेरे लफ़्ज़ों का मेरे तसव्वुर से शुरू होना...
मेरे जज़्बातों की कश्मकश को तेरे अहसासों का कान लगाके सुनना
और फिर कुछ ऐसे ही हर रात तेरा ढलना मुझ में,
मेरा हर सुबह तुझसे उलझकर अंगड़ाई लेना...
आज कुछ ऐसा लिखने की चाहत है।।
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