ख़्वाब है अपने हिस्से का आसमां पाने की,
अंबर में अपना अलग आशियां सजाने की,
मां के आंचल में ख्वाहिशों की उड़ान भरी थी,
अब बारी है इन दफनाएं सपनों में जान लाने की।-
"अम्बर"
बता ऐ अम्बर खुश क्यों नहीं करता,
हमारे गांव में भी बरसात क्यों नहीं करता।
कश्ती बंजर जमीन पर है,
तू बरसात क्यों नहीं करता।
किसान भूखे सो रहे हैं,
उनके परिवार पर रहम क्यों नहीं करता।
मौत से कौन बच पाया है,
ऐ मालिक तू अपने बच्चों का ख्याल क्यों नहीं करता।
जिसके आगे रोज झुकते हैं,
क्या आज वो बसर नहीं करता,
ऐ अम्बर तू बरसात क्यों नहीं करता।-
मैं अनंत अम्बर सा हूँ...
तुम हो प्यारी धरा प्रिये...
नाता हमारा युगों-युगों का...
पर नामुमकिन है मेल प्रिये...-
तुम प्यारी सी धरती...
और मैं अनंत आसमान...
क्षितिज पर भी हमारा...
मिलन कहांँ हो पाता है..??
सदियों तक रहेगा ऐसा...
अटूट हमारा नाता है..
पर फिर भी हमारा रिश्ता ...
संँपूर्ण कहां हो पाता है...??-
काश! मैं उनका अम्बर...
वो मेरी चांँद बन जाएँ...
फिर कुछ इस तरह...
हम दोनों, एक दूजे के हो जाएँ...-
हम दोनों की तकदीर...
अम्बर के दो सितारों सी है...
दिखते बेहद करीब है...
पर फासला लाखों मिलों की है...-
थे प्रेम अम्बर के सूरज हम...
अब छोटे चिंगारियों तक आ गए...
थे सुनहरे 🌞सुप्रभात🌞 के किरण हम...
अब काले अंधेरों तक छा गए...-
धरती अम्बर से सीख प्यार की छाया को
दुर है पर नज़रो के सामने है,
अम्बर धरती के लिए
तोह धरती अम्बर पे निर्भर है।।
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बूंदे ये जो टपकती है अम्बर से
तृप्त करती इस धरा धाम को
वो इस धरा की देन ही है
जो जलधि से जाती आसमान को।-
ना वो ज़मीन मेरी हुई, ना ही यह अम्बर।
दोनों ही रूठ रहे हैं मुझसे।।-