आया हूँ तेरे दर पे तू मोहब्बत की सिफारिश लिखना
ए फरिश्तों मेरी उल्फत को तू इबादत लिखना...❤️-
कुछ धुंदली सी दिखती है वजह जीने की मेरी
न जाने कहा मेरी उम्मीदो का चश्मा खो गया...-
बहुत सोचा मैंने लेकिन लिख नहीं पाया तुम्हे
तेरे तारीफ के काबिल मेरे अल्फ़ाज़ ही कहाँ...❤️-
मेरे हर अल्फ़ाज़ को अपना बनाने वालो
मेरे लिखे जज़्बात और दर्द कहा से लाओ गे...😏-
हमें रिश्ता निभाना था और उन्हें हमें छोड़ कर जाने की जल्दी थी कुछ यूं था हमारा रिश्ता मैं घंटों इंतजार किया करती थी उनका मजाल जो उन्होंने हमारा इंतजार खत्म किया हो हम एक रिश्ते में होते हुए भी एक साथ नहीं थे कुछ यूं था हमारा रिश्ता एक साथ होते हुए भी अजनबी से थे हम कहने को बहुत कुछ हुआ करता था लेकिन सुनने को कोई नहीं कुछ यूं था हमारा रिश्ता आंखों में कई ख्वाब थे एक दूसरे को लेकर पर शायद उन्हें पूरा करने की हिम्मत ना थी दोनों में कुछ नहीं था हमारा रिश्ता वक्त तो था पास पर उन्हें बिताने के लिए साथ कोई न था कुछ यूं था हमारा रिश्ता.. 💔
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इज़हार ए इश्क़ तुम ही करो तो बेहतर होगा...........
तुम्हे देख कर मेरे अलफ़ाज़ लड़खड़ाने लगते है.........-
अल्फ़ाजो में ढूंढती हूं तुम्हें
हकीकत में कहाँ तुम नज़र आते हो ...-
अगर कोई पूछे मुझसे मेरा मज़हब,
तो मैं अपनी नज़्म सुना देती हूं
अल्फ़ाज़ ही है मेरा खुदा,
उनको ही सजदे में मैं पढ़ देती हूं
है कई रंग इस बाज़ार में,
मैं सियाही को अपना धर्म बता देती हूं
सुनी ना किसीने जो फरियाद,
वो मन्नत काग़ज़ों पे उतार देती हूं
चढ़ा कर चादर चन लफ्ज़ों की,
अपनी दुआओं को पाक बना देती हूं
ना मंज़ूर हुई मेरी ख्वाहिशें तो क्या,
अपनी आरजू का काग़ज़ों पे मंदिर बना देती हूं
©Devika parekh-
"आयना देखू तो खुद से टूटा सही।
फिर भी ओठो पर मुस्कान है झूठा सही।।
ख्वाहिशे पूरी तरह से डूबा ही सही।
लेकिन उम्मीद है झूठा ही सही।।"-
ये मस्तिष्क एक भट्ठी है,
तो मेरा मन एक ईंधन,
इसमें अलफ़ाज़ें पकाया करता हूँ |
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