बना के अर्श-ओ-फर्श ., दहर-ओ-खुल्द...,
एक निज़ाम किया सब पर वाजिब.....,
यूँ आफताब खुद जलकर रोशन करें ज़र्रा ज़र्रा....,
बिना थके होता है हर रोज़ तूलु-ओ-गुरुब...,
बिन आफताब जो मेहताब रहता स्याह..,
ना किया शिकवा के रब तूने ऐसा क्यों किया ...,
रहना है गुलों को हरदम खार के दरमियाँ ...,
देख लो कैसे सजाएँ हैं तबस्सुम लबों पर मियाँ ....,
कायनात का ज़र्रा ज़र्रा करता है अपना फर्ज़-ओ-कर्ज़ बखूबी अदा...,
एक तेरे ही लबों पर ऐ-आदम क्यों है शिकवे सदा...,
बढ़ा रखी है इस कदर जो तूने तवक़्क़ो-ए- जिंदगानी...,
रब ने ना बनाई होगी दहर में जितनी खुश्क-ओ-पानी...,
करता नहीं फर्ज़ो को तू अदा, होता है कर्ज़ों में मुब्तिला...,
बस यही है तेरे आज़ारों की वजह.....,
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I never believed that paradise exist....untill I spoke with u. .
I never believed that time stops ...untill I saw into ur eyes. .
I never believed that happiness don't have limits...untill I spent time with u. .
I never believed that someone can become that special for me.. untill u came to my life....
N finally I never thought that,I can discribe someone like this untill I started dreaming about u....-
Mare nabi ka mojeza deko,
Ek Ahmed Reza ko beja toh
esa hua ki
Kayamat tak koi wahabi sunni ke samne
bait nahi sakta.-
ज़वाब भी नहीं, मुकरते भी नहीं
सनम हमारे, अब संवरते भी नहीं
वो मांग रहे है दुआएँ मौत की
एक हम है, के बस मरते भी नहीं
छोड़ दिया है, दिन-ओ-धरम
मज़हबी गलियों से, गुज़रते भी नहीं
खोद ली है क़ब्र , क़फ़न भी ले लिया
बादशाहों से, अब हम डरते भी नहीं
चाहे न बढ़ाओ तुम, तनख्वाह हमारी
जुते चाटते नहीं, चापलुसी भी करते नहीं-
Ala Hazrat
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Wahhh..........
Kya baat hai.
Wahhh..........
Kya saat hai.
Wahhh.........
Kya kalam hai.
Wahhh.........
Kya jabaan hai.
Wahhh......wahhh....
vah zindagi hai.
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నేను అని అనుకున్నంతవరకే
గెలుపైనా ఓటమైనా!
నేనే అని అనుకున్నావో
నువ్వు నెగ్గేదిలే... నేను తగ్గేదిలే!!-
जिन्हे कहते है लोग मस्लक वो है, अहमद रज़ा
जिन्हे कहते है लोग इल्म का दारिया वो हे अहमद रज़ा
मिट रही थी जब हस्ती हमारी ओर दिलो से नाम-ऐ-मुस्तफा
जिसने फिर से जगाया दिल मे नाम -ऐ- मुस्तफा वो है अहमद रज़ा
जिसने मिटने न दिया नाम दिलो से मुस्तफा
जिसने रखा जिदां सबके दिलो मे नाम मुस्तफा वो है अहमद रज़ा
कहते है अह-ले - नज्द वाले सरकार को इल्मे ग़ेब नही
जिसने हमे इल्म दिया वो है मुस्तफा ओर फिर से बताने वाले वो हे अहमद रज़ा
आये जब अहमद रज़ा तो लोगो से उन्होंने कहा तुम इन फिर्को से बचो यह दगा देगा ओर तुमको उनका गुस्ताख बना देगा ओर हमको गुस्ताखी से बचाने वाले वो हे अहमद रज़ा
फिर सब्ज़ परचम लेके आये "जुबैर " हाथ मे वो अहमद रज़ा
जिन्होंने दिलो से नज्द को मिटाया वो हे अहमद रज़ा
लेखक - जुबैर खाँन.......📝
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Tarif kya karun uski
Har ada uski ala hai
Madhosh ankhen uske
Rang uska sanwala hai..
Ziddi hai Thodi woh
Gussa bhi bohut pala hai
Ata rehta Pyaar Uspe par
Par Dil ko humne sambhala hai..-
मरहाबा या मुस्तफा, मरहाबा या मुस्तफा
मस्लक-ऐ आला हज़रत मरहाबा मरहाबा
मेरे अहमद रज़ा मरहाबा मरहाबा
जब जुल्म हद से बढ़ गाया ओर दिलो से नाम-ऐ-मुस्तफा मिट गाया फिर खुदा ने नूर ऐसा नबी के नूर जैसा पैदा किया जिसने मस्लक के नाम से इस्लाम को जिदां किया
कहा खुदा ने ऐ- रज़ा मेरी महबूब की उम्मत को क्या हो गया ओर दिलो मे बातिल बस गाया नाम-ऐ-मुस्तफा खो गया जाओ ज़मीन पर अहमद रज़ा जा कर यह
पैगामं दो के ऐ - लोगो शिर्क ओर गुमराही से बचो
तब कहा था मैनें ओर अब कहा
जब आये अहमद रज़ा सब हाल बताया अपने यहा हर उम्माती नज्द बना है अपने आज मे फिर कहा खुदा ऐ - रज़ा तुम मस्लक बन जाओ ऐ - अहमद रज़ा
तुम इनकी आखो से पर्दा गिराओ बे - हायाई का
फिर से परचम लहराओ तुम अच्छाई का
लेखक - जुबैर खाँन.....📝
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Ye dharilo vellalo vetukune vesulubatu naku ledu
Kanipinchina batalo nadustunanu
Ika venu tirigina nuvu kanapadavu
Em cheppi ee kanilanu odarchamantavu
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