देखो लहू है ताज़ा अब भी हुसैन का है
वो तख्त़ कर्बला का अब भी हुसैन का है
मर चूका है वो लाई ज़िंदा शहीद मेरा
होठो पे कलमा रहता अब भी हुसैन का है
हम इश्क़ कर चले है वो रश्क़ खा चले है
कौसर पे अब भी कब्ज़ा अब भी हुसैन का है
असग़र कों तीर मारा जो हुर्मला तुने था
वो भूखा प्यासा बच्चा अब भी हुसैन का है
दरिया पे जब गये थे अब्बास था अकेला
सारा जहां अकेला अब भी हुसैन का है
वो अर्श रो रहा है वो फर्श रो रहा है
होता है सबमे चर्चा अब भी हुसैन का है
तू भी "ज़ुबैर" लिख ले अपनी ज़ुबानी "नोहा"
तू ज़िक्र करने वाला अब भी हुसैन का है
लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️-
देखो लहू है ताज़ा अब भी हुसैन का है
वो तख्त़ कर्बला का अब भी हुसैन का है
मर चूका है वो लाई ज़िंदा शहीद मेरा
होठो पे कलमा रहता अब भी हुसैन का है
हम इश्क़ कर चले है वो रश्क़ खा चले है
कौसर पे अब भी कब्ज़ा अब भी हुसैन का है
असग़र कों तीर मारा जो हुर्मला तुनेथा
वो भूखा प्यासा बच्चा अब भी हुसैन का है
दरिया पे जब गये थे अब्बास था अकेला
सारा जहां अकेला अब भी हुसैन का है
वो अर्श रो रहा है वो फर्श रो रहा है
होता है सबमे चर्चा अब भी हुसैन का है
तू भी "ज़ुबैर" लिख ले अपनी ज़ुबानी "नोहा"
तू ज़िक्र करने वाला अब भी हुसैन का है
लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️-
221 2121 1221 212
जों हाल देखते थे हमें जों मलाल में
वों भी नही रहे है रहे जों ख्याल में
लेखक - ज़ुबैर खान.........✍️-
2122 1212 22/112
आँखे देने लगी सज़ा मुझकों
अब नहीं चाहिए दुआ मुझकों
लेखक – ज़ुबैर खान ✍️-
2122 1212 22/112
मुझकों कैसा ख़ुमार छाया है
तेरे जैसा बुख़ार आया है
लेखक -ज़ुबैर खान.....✍️-
2122 2122 2122
है ज़बा पर कुछ नही क्यों फिर सज़ा है
हर वफ़ा में हर अता क्यों फिर क़ज़ा है
मतलब - मैंने कुछ नहीं कहा, फिर भी मुझे सज़ा मिली।
मैंने हर वफ़ा निभाई, सब कुछ कुर्बान किया —
फिर भी अंजाम जुदाई या मौत जैसा क्यों हुआ?"
लेखक - ज़ुबैर खान.........✍️-
ख़त्म करना है काम बातिल को
बे-ज़ुबा पर क्यों शौर करते है
मतलब -"बुराई को खत्म करना है
तो शोर नहीं, सही कदम उठाना चाहिए।"
लेखक - ज़ुबैर खान.....✍️-
फिर भी क्यों ऐतिबार करते है
खुदको क्यों शर्म सार करते है
मानते हों बुरा हमें जानो
क्यों खता बार बार करते है
है ज़बा पर जो बात वों कहदो
अहसा करके क्यों गै़र करते है
ऐसी इज़्ज़त करों न फिर मेरी
जैसे कोई जो और करते है
ख़त्म करना है काम बातिल को
बे-ज़ुबा पर क्यों शौर करते है
देखकर तंग दस्ती में रूह को
इसलिए वों भी खै़र करते है
इस भरी ज़िंदगी को जीते जी
रास्तो को क्यों खा़र करते है
तू सही है"ज़ुबैर" अपनी जगह
दिल हमारे क्यों दूर करते है
लेखक - ज़ुबैर खान.........✍️-
2122 1212 22/112
बे-खबर को खबर नहीं होती
गर नज़र को नज़र नहीं होती
गै़र होके चले गये होते
गर कदर को कदर नहीं होती
रोक लेती हमें निगाहेँ तेरी
गर असर को असर नहीं होती
टूट चूके न होते बातों से
गर इधर को इधर नहीं होती
हम मुकम्मल जहां तेरा करते
गर ख़बर को ख़बर नहीं होती
ज़ख्म देता रहा जहां मुझकों
गर सफर को सफर नहीं होती
क्या करेंगे "ज़ुबैर" कहके हम
गर गुज़र को गुज़र नहीं होती
लेखक - ज़ुबैर खान........✍️-
मुझ में कोई सुरूर ना आया
खुद पे कोई गुरूर ना आया
लेखक - ज़ुबैर खान.....✍️-