If this question or situation had come up - three - four years ago, my answer would have been deeply emotional and straight from the heart. Back then, I was truly attached to this app—especially because of the beautiful bond I had formed with other writers. It genuinely felt like a family.
But today, things are different.
The passion for writing has faded, those people are no longer around, and honestly, there’s not much time either...
So now, if something like this happens, I’d simply say:
“It’s okay. It’s just a month—
it’ll pass. Anyway, it’s not like I write much these days.”-
औरन को शीतल करैं, आपहु शीतल होय!!
Give respect take respect �... read more
टूटने का भी एक सलीक़ा होना चाहिए !
यूं रो रो कर तो भीख मांगी जाती है !!
हमने सीखा है हमेशा ज़र्फ़ में रहना !
यूं ग़मज़दा होना हमें रास नहीं है !!
ख़िज़ा का मौसम है चेहरे का रंग उड़ा है ,
अभी हवाएं तेज़ हैं , अभी साथ कोई नहीं..,
सब्र कर बेवजह परेशान ना हो मेरी जान...,
दिल मेरा इतना भी उदास नहीं है!!
किस क़दर बेरहमी से ज़िंदगी आईने दिखाती है,
अपनों के बीच बेगानों सा रहना सिखाती है,
तू इश्क़ मोहब्बत की डोर थामी रही "क़िस्मत"
मुझे रब के सिवाए किसी पर भी यक़ीन नहीं है !!-
हां मैं नए ज़माने में पुरानी सी लड़की हूं..,
मुझे नहीं आता प्रैक्टिकल मोहब्बत करना..,
मुझे आज भी आंखों में आँखें मिलना पसंद है,
छूना अहम नहीं बस मुस्कुराना पसंद है,
आप आज के लड़के हो ,
आपको मेरी मोहब्बत समझ नहीं आएगी...,
हम दोनों में बस इतना फ़र्क है...,
मैं शिद्दत पसंद नासमझ हूं,
आप सुलझे हुए समझदार हो !!-
जब कभी एहसास ए कमतरी हुआ ..,
अपने अतराफ एक नज़र घुमाई मैंने ...,
कांप उठी रूह और तड़प उठा दिल ...,
सजदों में मालिक का शुक्र अदा किया ...,
है मेहरबानी तेरी के तूने ही तो हमे ...,
सही सलामत बा-श'ऊर पैदा किया !!
है दिल क्यूं फ़िर नफ़्स का मारा हुआ ...,
हर लज़्ज़त-ए-दुनियां इस का सहारा हुआ...,
दे रहा मालिक इसे हर दिन आख़िरत के इशारे ...,
अपनी अना से निकल समझ कुदरत के नज़ारे !!
शुक्र है क़िस्मत तू अभी तक साबित क़दम है ..,
झेल रही बेमूरवत ज़िंदगी को यह तेरा दम है ...,
"हस्बुनल्लाहु वा नी मल वकील" क्या कम है ...,
बस इसी दुआ पर हर मोमिन की आँखें नम है !!-
इस कदर अपनों के बीच हम बेगाने लगे
सारी दुनिया समझदार बस हम दीवाने लगे
रात भर जागने से पडे इन स्याह हल्कों को
लगाकर परत पाउडर की फिर छुपाने लगे
कान पकडकर बचपन मे दिया सबक माँ ने
जवान होकर नई पीढी को सिखलाने लगे
मय का रिंद जाने इबादत के नशे मे मुझे
ये मंदिर मस्ज़िद गिरजाघर मयखाने लगे
हक़ीक़त को पंख लगे ज्यूँ ही देख "क़िस्मत"
सब वादे-वफ़ा रस्में और कसमें अफसाने लगे-
आज कल नहीं होती है दोपहर ...,! ना ही होती है शाम...,
बस होती है एक भारी सुबह और उसे अंत देती बोझिल थकी रात...,
और इसी के बीच गुज़र रही है ज़िंदगी..,
ये हमेशा नहीं रहेगा मैं जानती हूं.., एक बार दिल को सब्र आ जाए फ़िर कुछ भी मायने नहीं रखता.. , सब कुछ सिफ़र हो जाता है..., लेकिन उस सब्र आने तक का सफर आग का दरिया है !!
ये आप की ग़लती नहीं है, ये मन का हाल है मेरे ,
जो आपको ढूंढने में ख़ुद को खो रहा है.., कहते है न ज़मीन में दबी गर्मी एक दिन फूट कर लावा बन जाती है ठीक उसी तरह दिलों में दबे ऐहसास और बातें फट कर ज़हर बन जाते है..!!!
शायद इसीलिए अब बातें नॉर्मल भी करने जाओ तो एक टीस रहती है दिल में,
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शायद आपके भी , ख़ुदा जाने !!-
कुछ निशान है मेरे दिल ओ दिमाग़ पर....
गहरे.., बहुत गहरे...,
कभी कभी इतना रोना आता है कि मानो सब बेहरे हो जाएं
और मैं चिल्ला चिल्ला कर रो लूं
और कोई सुन न सके मेरी आवाज़...,
तड़प कर, टूट कर, बिखर जाऊं...!!!
ये निशान किसी तरह धोए नहीं जाते,
अतीत के काले साए इन्हें नमक का पानी पिलाते हैं..,
मैं जब भी इन्हें मरहम लगाने की कोशिश करती हूं,
हाथ में कील और खंजर ही आते हैं!!-
आज ख़्वाब मे मेरे गुलाब आए !
आज तुम याद बेहिसाब आए !!
चल गई सीनों पर छुरियां सब के !
ओढ़ कर जब तुम हिजाब आए !!
ख़ौफ खाते नहीं ये ज़ुल्मी लोग !
बस ख़ुदा का अब अज़ाब आए !!
दिल ख़लवत का है मुंतज़िर यूं तो !
कह दो ना कोई यहां जनाब आए !!
सख़्तीयां अच्छी है इस दुनिया मे !
आख़िरत में काम सवाब आए !!
ज़िंदगी गुज़री है तारीक़ी में सारी !
रौशनी देने कोई आफताब आए !!
देती हैं "क़िस्मत" हर मां दुआ यही !
हो कर मेरा बच्चा कामयाब आए !!-
एक दिन और गुज़र गया ए दिल-ए-नादान समझ ज़रा!
ये दुनियां है यहां लोग मोहब्बत भी मतलब से करते हैं!!-
गर सिरदर्द सिर्फ मर्ज़ है तो तबीब काफी है !
वरना ज़हनी सिरदर्द का कोई इलाज नहीं !!
देश की हुकूमत और मौसम का हाल एक जैसा!
वक़्त बे वक़्त बदले ऐसा हमारा मिज़ाज नहीं !!
बड़े अदब से बेअदबी करते हैं दिल अज़ीज़ यहां !
बेअदब लोगों में मुकर्रर रहा कोई रिवाज़ नहीं !!
अपनी अपनी खामियों का सेहरा आवाम के सर !
तुम ने बंद किया पानी जहां एक दाना अनाज नहीं !!
क्या हुआ "क़िस्मत" जो एक बार और लुट गई !
लुटेरों के खेमों में अपने पराए का लिहाज़ नहीं !!-