खुद को कभी सही तो कभी गलत समझ लेता हूं,
सबकी बातों को अब अच्छी तरह से परख लेता हूं,
वैसे गलतियां तो बचपन में हुआ करती थी,
अब सबकी अकड़ को अपनी जेब में रख के चलता हूं।
-rajdhar dubey-
चट्टान सी तासीर वालों
देखा है ..?
वह उफनता वेग
मासूम सी लहरों का
इतना ना अकड़ो
कि कोई
जुनून में आकर
तुम्हें चूर चूर कर दे-
Mujhe Toote Hue Log Bahut Pasand Hai,
Kyuki Unme Akad Nahi Hoti...
❤️❤️❤️-
"Baap ke paise pe nahi...
Khud ke dum par kuch karunga...
Tabhi akad💪 dikhaunga...!!!"-
तू मुझे याद करें
एसे तक्दीर नहीं..
मैं तुझे याद करुँ
एसे तेरे ओकात नहीं...-
झुकता वहीं है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुर्दों की पहचान होती है।-
जिन्हें ढंग से बात करनी नहीं आती,
वो हमें तमीज़ सिखा रहे हैं|
अपनी अकड़ से सबको धमका कर ,
औरों की परेशानियां बढ़ा रहें हैं|
*ऐसे कैसे चलेगा भईया*
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अकड़ते हुए जो तरस दिखाते हो,,
इतनी लाचार नहीं हूं जो तरस खाते हों.....
जिस दिन प्यार नाज़ को छोड़,,
अपने गुरूर पर आयेंगे,,
अंदाजा ना लगा पाओंगें,,
तुमको कितना तड़पायेंंगें......
संभाल जाओं वक्त रहतें,,
ना चीख सुनेंगा जमाना,,
ना हम खंजर उठायेंगे,,
सांसें बेवफाई करेंगी,,
पर मौत तुम्हें ना गले लगायेंगी......
जितना दर्द दोंगे ना सुध-समेत तुम्हारे लौटाऊंगी......!!-
ज़ियादा अकड़ के चलने वालों की नज्र इक शे'र
अकड़ कर चल रहे हो ठीक है पर
रहें ये ध्यान.... मरकर लेटना है-
धूप के नखरे अब बढ़ने लगे हैं
हम बारिश की दुआ करने लगे हैं।
इंसानियत क्या है समझने के लिए
गीता ओ क़ुरान हम पढ़ने लगे हैं।
मुस्कुराते हुए देखा है कई बार उसे
अंतसमन में मूर्ति कोई गढ़ने लगे हैं।
द्वन्द विचारों का तो चलता रहता है
हम आपस में क्यों लड़ने लगे हैं।
कोई भूख से तड़प के मर रहा है
तो कहीं अनाज के ढेर सड़ने लगे हैं।
सलीक़ा फिर से सिखाओ इनको
बच्चे माँ बाप से लड़ने लगे हैं।
सियासतदानों को बनाया है हमने
और वो हमपे ही अकड़ने लगे हैं।
बस करो बहुत लिख लिया "रिया"
लोग समझेंगे हम झगड़ने लगे हैं।
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