एहसास लिखा...एतबार लिखा... इक़रार लिखा
जी हां वही.....इज़हार भी लिखा
मगर उस कमबख्त़ ने अब तक कोई जवाब ना लिखा-
मौसम का ऐतबार ज्यादा नही किया
उसने हमसे प्यार ज्यादा नही किया
कुछ तो हमने पलटने मे देर की
उसने इन्तजार ज्यादा ना किया-
चाहे कर ले तू मिन्नतें हजार...
नहीं होगा मुझे तुझ पर ऐतबार...
क्योंकि, आशिकी की इस राह पर...
मुझे मिले है धोखे बार-बार...-
ना ही ठीक से इनकार करते थे
ना ही ठीक से इज़हार करते थे
पता नहीं प्यार करते थे या क्या करते थे
हम तो जो भी करते थे दिल से करते थे
वो शायद हर चीज़ दिमाग से करते थे-
_आशिकी_
गर एतबार नही-ए-ज़ालीम
तो मै छोड़ दूँ ये जहाँन
मौत से बद्तर है आशिकी
के टूँट चुका हौसला-ए-इमतेहाँन-
Koi aissa mile jo harr haal m mujh pr aitbaar kre
Mere mna krne pr bhi sirf mujhse hi pyaar kre-
इश्क पर था हमें ऐतबार बहुत....
पर थी यह हमारी भूल मियांँ...
प्यार के बदले दर्द मिला हैं...
मेरे महबूब का है यह तोहफा मियाँ...-
उससे धोखा खाकर लोगों से , एतबार उठ गया मेरा !
जब वो बदल सकता है तो ,कोई भी बदल सकता है !!-
مسمار ہو چکا بہت پہلے ہی میرے اعتبار کا محل
اب لوٹ آؤ نۓ وعدوں کے ساتھ بھی تو کیا فائدہ
Mismaar ho chuka bahut pahle he mere aitebar ka mahal
Ab lout aao naye waado ke sath bhi to kya fayda
✍️رائٹس۔ناعمہ اصلاحی-