तेरे इश्क के रंगों में कुछ यूं रंगी हूं,
की रंगों से दूर अब कहां जाएं।
दिन में तो तुम साथ थे समझ नहीं आता,
इस स्याही अंधियारी रात में,
तुमसे दूर कहां जाएं।
तुझे भुलाने में शायद अब एक उम्र लग जाएगी,
समझ नहीं आता तुझे भुलाने,
तेरे ख्यालों से दूर कहां जाएं।
जब तुम साथ थे महफिल में रौनक की तरह थे हम,
समझ नहीं आता अब महफिलों में,
अपने अकेलेपन को छिपाने कहां जाए।
अपना हर गम कभी तेरे साथ बाँटा था हमने,
अब समझ नहीं आता तेरे ना होने का गम,
बाँटने किसके पास और कहां जाएं।
Dishu Rastogi
-