तस्वीर को देख कर थोड़ा ख्याल कीजिएगा।
बरसात आ रही है,थोड़ा ही सही पानी रोकिएगा।
हो सकता है किसी की इस पहल से जान बच जाए।
आप को खुसी और उनको एक नया जीवन मिल जाए।-
ये जो प्रकृति है ना , माँ हे हमारी
लेकिन छोड़ दिया माँ को उसके अपने हालात पे,
जो पेड़ों को अपना बेटा मानती है
जो नदियों को अपनी बेटी मानती है ।
क्या किया हमने काट दिया पेड़ों को
नदियों को प्रदूषित कर दिया,
जंगल को बर्बाद कर दिया
पूरी पृथ्वी का विनाश कर दिया।
विकास की आग मे इंसान इतना अंधा हो चुका है,
की माँ की कोख को ही जलाने बैठा है,
इसीलिए श्राप लगा है एक माँ का
की जब जब प्रकृति का नुकसान करोगे
तब तब वह अपना रौद्र रूप दिखाएगी,
अपने बच्चो को इस ख़तरनाक इंसान से बचाएगी।-
दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी,
ये इंसान हो ही नही सकता,
जिसने एक जानवर को मारकर,
इंसानियत तार तार करदी,
कीमती है ज़िन्दगी उनकी भी बहुत,
कुछ तो शर्म किया करो,
खुद को इंसान कहते हो अरे कमबख्तों,
उन्हें जीने तो दिया करो।-
We can destroy a forest in a day,
But we cannot develop a forest in a day,
-
जंगल
शेष बचा कुछ वक्त अभी भी,
छूट न जाए इन हाथों से।
बचा ले इंसा इस धरती को,
तू अपने ही विनाशों से ।
सब कुछ तो है सामने,
फिर भी इसे नकार रहे हैं।
काट कर के अपनी सांसें,
फिर घरों को सवार रहे हैं।-
खोने को तो वादियाँ भी हसीं कम न थी
मगर आप तो वादियों की राजनीति में गुम हो गए-
किस भ्रम में जी रहे
कब समझेंगे हम
कब बनेंगे सच में इंसान
कर के सृष्टि से खिलवाड़
बन रहे नादान
प्रकृति को बचाने की चंद कोशिशें
भी हों रहीं बेकार
किस डेवेलपमेंट की बातें कर रहे
हमारी बातें सिर्फ़ कागज़ी हैं हर बार
कहीं बाढ़ कहीं सूखा प्रभावित
हो रहा है पूरा देश
क्या अब भी नहीं ज्ञात हो रहे
हमें प्रकृति के आदेश
यक़ीनन प्रकृति चाहिए साँसें लेने के लिए
और यहाँ जिंदगियां तबाह कर रहे ज़िंदा रहने के लिए-
पर्यावरण:
बड़ा शांत था में पहले मगर बडे दर्द हुए मुझे ,
में खुद चुप रहकर रोया मगर सबको खुश रखा मैने,
सब चीज़े पाते हो मुझसे सब होता है मुजमे ,
मगर फिर भी बिगाडा मुझे ,
नही रहूंगा में शांत अब अगर फिरसे बिगाड़ा मुझे ,
अरसों बाद ठीक हुआ हूं में अब रहने देना अच्छा मुझे।।-