Naveen Upreti   ('नवीन')
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Joined 28 December 2018


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Joined 28 December 2018
28 JUL AT 23:18

अब वक़्त नहीं मिलता है साथ बैठने को,
हम भी वही हैं, तुम भी वहीं हो मिलने को।

पहले जो हर शाम में रंग भरते थे,
अब ढलती शामें तरसती हैं बहने को।

चाय की प्यालियों में जो किस्से थे अपने,
अब रह गए हैं बस यादों में कहने को।

पहले जो नज़रों से ही सब कुछ कह जाते थे,
अब लफ़्ज़ भी तरसते हैं मौक़ा गढ़ने को।

कभी जो वक़्त बाँट लिया करते थे हम,
अब बहाने हैं बस वक़्त बचाने को।

तन्हाई में भी हम दोनों शामिल थे कभी,
अब भीड़ में भी कोई नहीं है समझने को।

रिश्ते भी आजकल डिजिटल हो चले,
ऑनलाइन दिखते हैं सिर्फ़ देखने को।

छोटी सी नाराज़ी पर जो दिल मना लेते थे,
अब मुद्दतें लगती हैं दिल को पिघलने को।

कब आख़िरी बार तुमने मेरा नाम लिया?
अब नाम भी शायद थक गया है सुनने को।

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25 JUN AT 22:34

एक अदब से कुछ बात लिखी है,
ख़ुद को आवारा, तुझे ख़ास लिखी है।

मैंने अपनी दास्तान अधूरी छोड़ दी,
और तेरे नाम पूरी किताब लिखी है।

तेरे बिना लफ़्ज़ भी तन्हा से लगे,
हर पन्ने में तुझसे मुलाक़ात लिखी है।

जो कह न सके ज़ुबां से कभी,
दिल की वो हर एक बात लिखी है।

लौट आओ तो पढ़ लेना कभी,
तेरे इंतज़ार में हर रात लिखी है।

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22 JUN AT 21:30

एक दिन मिलने आओगे तुम,
ख़ुद में खोया पाओगे तुम।

जब आँखें मिलेंगी चुपचाप कहीं,
कुछ अनकहा सा कह जाओगे तुम।

वो लम्हे ठहर से जाएंगे फिर,
जिन्हें जीकर भी तरस जाओगे तुम।

हर बात में होगी मेरी ही बात,
हर साँस में बस जाओगे तुम।

मैं तो कब का बिखर चुका हूँ,
क्या मुझे समेट पाओगे तुम?

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9 MAY 2023 AT 21:47

कभी सोचा तुम्हें वीरान लम्हों में,
तो कभी महकती शाम में।।

कभी कर्राते हुए दर्द में,
तो कभी बैठे- बैठे आराम में।।

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12 MAR 2023 AT 22:03

क्या तुम वहीं हो!
जहाँ से ये रास्ते अलग हुए थे
या बढ़ चले हो फिर से सफर में,
किसी की आश में किसी की तलाश में।

क्या तुम भी खामोश रहती हो!
अपने ही ख्यालों में मदहोशी में,
दिन के उजाले में चाँदनी रात में।


क्या तुम भी रोती हो!
बीते कल की याद में या पश्चात्ताप में,
अकेले बीरानगी में या फिर किसी के साथ में
बंद कमरे में या फिर खुले आसमान में।

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11 FEB 2023 AT 23:18

तुम्हारी खूबसूरत आँखें देख कर,
भगवान भी शरमा जायेंगे।

कितनी नक्काशी से तरासा है इन्हें,
खुद ही भरम में पड़ जायेंगे।।

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11 JAN 2023 AT 10:51

तुझसे जुड़े हर किरदार से दूर होना चाहता हूँ।

उनके लब्जों से तेरी बातों की महक आती है।।

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12 JUN 2020 AT 20:44

जंगल

शेष बचा कुछ वक्त अभी भी,
छूट न जाए इन हाथों से।
बचा ले इंसा इस धरती को,
तू अपने ही विनाशों से ।

सब कुछ तो है सामने,
फिर भी इसे नकार रहे हैं।
काट कर के अपनी सांसें,
फिर घरों को सवार रहे हैं।

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16 DEC 2021 AT 17:52

दिल उजड़े तो नए घर बस गए।
गाँव उजड़े तो कई शहर बस गए।।

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13 NOV 2021 AT 0:26

बात मोहब्बत की जहाँ भी होगी ,

तू मेरे बाजूं में हर दफा होगी।

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