सीमायें सुनसान पड़ी हैं,
सरहद पे सन्नाटे है,
सांसो के इस जंग में कितने,
मेरे अपने जख्मी हो गये हैं,
वक्त ने क्या करवट बदली है,
जो घर जाने को तरसते थे,
अब घर में कैदी हो गये हैं ।-
अजीब सा शोर मालूम होता है रात के इस पहर में ।
इतना सन्नाटा है कि कान फटे जाते हैं..-
इर्द-गिर्द भटक रही ये यादें बीते दौर की है
बर्दाश्त कहां ये सन्नाटा अब तो आदत शोर की है
दुनिया के हर खोर में दहशत जिस आदमख़ोर की है
उसके खिलाफ इस जंग में हाज़त, कहां सियासी तौर की है
हवायें ये झुलसाती आती ना जाने किस ओर की है
बर्दाश्त नहीं दिन में राते हमें तो आदत भोर की है
कहां भायेगा ये मौसम आंधी जो आयी ज़ोर की है
हमें तो आदत बहारों की और नाचते मोर की है
मर्ज़ तो आते-जाते है इतिहास की बातें ग़ौर की है
जहां ना कोई मर्ज़-मलाल मुझे तलाश उस ठौर की है।-
जायज है मेरे यारा जुदा होने पर ये सन्नाटा भी ,
शोर भी गजब का हुआ था मोहब्बत में हमारी..!!!!-
कितना सन्नाटा है अंदर निरेख लिया ना
बहुत कहते थे सामना न होगा अंधेरे से
अब जब हो गई तो आंखो से पट्टी उतार फेक दिया ना-
💔 खामोशी 😒
कभी कभी इतना खामोश हो जाता हूं
बिलकुल भी कुछ सुझता नही
खामोश ..खामोश.. और सिर्फ खामोश..!
जैसे मेरी घडी कि ठक़ ठक़ और
दिल कि धक़ धक़ एकसाथ हो रही हो
मन बस अकेला बैठा हो जैसे कि शांती का प्यासा
शायद किसी का इंतजार कर रहा हो
शायद किसी की राह देख रहा हो
शायद कोई आ के मिलने वाला हो
उन्हे मुझे छोडके वक्त गुजर गये लेकिन, फिर भी
कभी कभी यह खामोशि उनकी याद दिलाती हे ...!
खामोशी उनकी याद दिलाती हे या उनके यादों
कि वजह से खामोश हू पता नहि...😔😔-
अरसे से थक चुका था गाँव बुलाते बुलाते
पर कहाँ किसी को आना था l
दुनियाँ को गाँव में लाने के लिए,
अब कायनात को तो कहर दिखाना था ll-
मंजर तो अद्भुत ना था आज ,
गलियों में पसरा सन्नाटा था आज।
कैसी है ये विपदा,जिसने हर कोने को वीरान किया,
बच्चों की किलकारियों को भी इसने है सुनसान किया ।
उफ़्फ़!!!
हाये रे कुदरत कैसी ये तेरी माया है,
अंधेरों में सिमटा हर इंसान का काया है ।
सुनों अब जो होना था वो तो हो गया,
कल फिर एक मासूम भूखा पेट सो गया ।
#पंडित-
तन्हा सिसक रहे किसी की याद में,
चीर सन्नाटे की रात स्याह है
इक "निहार" तुम अकेले नहीं हो,
इश्क़ में सारी दुनिया तबाह है..!!-