दरिया की कल कल में, सागर की मझधार में
कोयल की सुर ताल में, बारिश की मधुधार में
सब जहां का प्रसार है, माँ से एक संसार है।
शेर की दहाड़ में, अरावली के पहाड़ में
शिव के शिवाड़ में, रिवाजों के किवाड़ में
सब जहां का प्रसार है, माँ से एक संसार है।
नारी के गर्भ में, धरा के भूगर्भ में
थार की माटी में, वधू की परिपाटी में
सब जहां का प्रसार है, माँ से एक संसार है।
दरख्त के दर्पण में, श्राद्ध के तर्पण में
पिता के अर्पण में, माता के समर्पण में
सब जहां का प्रसार है, माँ से एक संसार है।
जहाँ सबका संसार है, वहाँ माँ ही से प्रसार है।
-