वो रो देते है अपनी बातो को मनाने के लिए हम आँसू भी छुपा लेते है उनके मुस्कुराने के लिए संग चलने के लिए कुछ वक़्त था माँगा रब का शुक्रिया मुझे मेरे अक्स से मिलाने के लिए ॥
गाँवों में देखे सपनो को शहर में पूरा करने जाते है बच्पन की यारी छोड़ अनजानो से दोस्ती कर जाते है जिस उम्र में माँ बाप भटकने से बचाते है उस उम्र में हम दुनिया से लड़ना सिख जाते है मध्यमवर्ग से है तभी तो अपने शौख से पहले जिम्मेदारियाँ उठाते है जब सब घूमने जाते है तो हम अपनों संग छुट्टियाँ मानते है पर अब अपना ही गाँव अनजान सा लगता है जिन कच्ची सड़को पे दोस्त संग साइकल से घूमते थे वो सड़के तो पक गए पर दोस्त बस जानकर से रह गए ॥
किसी के लिए वरदान तो किसी के लिए अभिशाप है जनाब बारिश कहाँ सब के लिए एक समान है कोई मिट्टी तो कोई कीचड़ से परेशान है ज़रा उनसे पूछो जिनके मिट्टी के बने मकान है कुछ बारिश का बाल्कनी से लेते लुफ़त है तो कोई अपने घरों को छोड़ शहर की और करता रुख़ है कहने को तो लोकतांत्रिक देश है हमारा पर क्या हर किसी के लिए एक सामान है ये देश हमारा ॥
खामखां बेज़ार हो गया इस जिंदगी से खुद को भूला खो बैठा तेरी जिंदगी में बिन मंजिल के कच्ची राह पे कुछ यू चला कि तेरे अक्स के बिना इंतिशार हो गया जिंदगी में ।।
बेवफ़ा भी कहु तो कैसे कहूं गलत मै ही था सजा भी दू तो किसे दू वजह भी मै ही था बेवजह कोई यू ना बिछड़ता किसी से नादान उम्र की कुछ गुस्ताखियां ही थी जिसकी सजा मिलती पुरी ज़िन्दगी को ।।
कहने को तो आजाद है पर छिपे कई नकाब है 74 साल की आजादी फिर भी किसान लेते खुद की जान है आज भी चल रहा सर्व शिक्षा अभियान है युवा देश का तमगा फिर भी नौजवान बेकाम है जंजीरों से बंधे औरतों के पांव गरीब अभी भी गरीब अमीर हो रहे बलवान है सियासत का खेल में पीस रहे आम इंसान है तभी तो पुलिस कमज़ोर और जनता लाचार है कुछ की कर्मो की सजा भुकता पुरा हिंदुस्तान है।।