कैसे पत्थर हुए कलेजे, कैसे अंधे मन थे वो,
जो बेकसूरों पर बरसे, वो खुदा के डर से दूर थे वो।
गोली चलाने वाले कैसे निर्दयी थे न जाने,
जिन्हें न रुलाया कोई चेहरा, न झकझोरा किसी का रोना।
जान गंवाने वाले मासूम थे, न हिंदू थे न मुसलमान
तुमने तो देखी न कभी माँ की आँखों में इंतज़ार की नमी।
क्या मिली खुशी तुम्हें, करके ये लहू की होली?
तुमने बुझाई हँसी की लौ, जलाई दुनिया रोली-रोली।
पर ज़ख्म हरे रहेंगे, सदियों तक रिसते रहेंगे,
हर चीख़ में तुम गूंजोगे, हर ख़ामोशी बोलेगी।
ये कैसी आग लगाई तुमने, कैसी ये नफरत बोई,
हर कतरा लहू का पूछेगा, क्यों तुमने जान ये खोई?
इस धरती का कर्ज़ रहोगे तुम,
जिसे ना आँसू बहा पाएंगे, ना वक़्त मिटा पाएगा।
तुमने मारे जिस्म, पर वो रूहें अब भी चिल्ला रही हैं —
"इंसान बनो... वरना इंसानियत खुद मर जाएगी।"-
How did hearts turn cold as stone, how did minds go blind?
To shoot at souls so innocent, with no mercy in their mind.
They knew no fear of any God, no tremble in their hand,
No face could move them, no tears could make them understand.-
Blood Stained Snow : The Silent End of Love
( Read in Caption )-
रो पड़ती तो क़लम ख़ून रोती आज,
हर अक्षर में छुपा कोई रुदन कहती आज।
कुछ करती या नहीं
ये सवाल भी शर्मिंदा है,
भाईचारे की गाथा भी
कहीं गुमशुदा जिन्दा है।
थूक पाती तो क़लम
इंसानियत पर थूक देती आज।
संवेदनाएँ भी मर चुकी हैं
रहम की कोई बात कहाँ आज ?
भीड़ में खो गया इंसान,
चेहरों पर नकाब, दिलों में तूफ़ान।
कोई चीखता है चुपचाप,
तो कोई हँसता है लाशों के ख़्वाब।
ये ज़माना पूछे क्या हुआ
बोलो न क्या हुआ तुम्हारी रूह को ?
क्यों मर गया वो जो तुझमें
जीता था कभी बेहिसाब ?-
सोच कर रूह कांप उठता है,
कि जिनके हाथों की लाली तक ना मिटी हो,
उनके माथे की लाली मिटाई गई है ...🥹🥹-
झगड़े भी उससे ही होते हैं सबसे ज़्यादा,
जिससे बिछड़ने का ख्याल भी खलता है...
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