QUOTES ON #LETTERTOPREMCHAND

#lettertopremchand quotes

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30 JUL 2018 AT 19:30

#LetterToPremchand

कल हिंदी उपन्यास सम्राट 'प्रेमचंद' जी का जन्मदिन है। शायद ही ऐसा कोई हो जिसने उन्हें न पढ़ा हो। कभी-कभी उन्हें पढ़कर उनसे कुछ कहने का मन करता है। आइए उन्हें एक पत्र लिखकर उनसे बातें करते हैं।

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31 JUL 2018 AT 5:18

#lettertopremchand

यूँ तो करने को सवाल बहुत सारे है
सहित्य के दरिया के आप ही किनारे हैं

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31 JUL 2018 AT 2:10

"मैं एक मज़दूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ,
उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं।"
~✍प्रेमचंद✍

मेरे आराध्य मेरे साहित्यिक आदर्श,
आपकी इन अनमोल पंक्तियों से आपको
श्रद्धानमन,

आपका सम्पूर्ण जीवन साहित्य लेखन को समर्पितरहा। साहित्य की सभी विधाओं यथा- कहानियाँ, उपन्यास, नाटक,लघुकथा, बाल पुस्तकों -के लेखन से हिंदी और उर्दू भाषा में भारतीय साहित्य में आपने अमर योगदान दिया। साथ ही, अनेक पत्र- पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। आपकी सभी रचनायें अपने आप में अद्भुतऔर जनमानस पर अमिट छाप छोडने वाली कालजयी रही हैं। लेकिन, आपने अपनी काव्य-विधा से संबंधित अपनी प्रतिभा से हमें मरहूम क्यों रखा,जबकि आपने अपनी कहानी "गुरु मंत्र"में इसका परिचय इस लघु मगर सारगर्भित पद की पसंदगी और चयन से दिया है:

"माया है संसार सँवलिया, माया है संसार
धर्माधर्म सभी कुछ मिथ्या, यही ज्ञान व्यवहार,
सँवलिया माया है संसार।
गाँजे, भंग को वर्जित करते, है उन पर धिक्कार,
सँवलिया माया है संसार।"

मुझे प्रतीत होता है कि शायद इसका जवाब आप ही बेहतर दे पाते..!
💐सादर श्रद्धा सुमन अर्पण🙏 #Veenu"✍

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30 JUL 2018 AT 22:32

मेरे आदर्श प्रेमचंद जी,
नाम लेने का साहस जुटा लिया, इस धृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी। किस तरह कोई किसी विधा में डूबकर किसी का दीवाना हो जाता है यह आपकी शख्शियत ने कर दिखाया। आपका मुरीद हुआ यह कहने में हर्ष है मुझे। आपकी "दो बैलों की आत्म कथा " ने इस कदर प्रभावित किया कि बस...मैं निःशब्द हूँ। आपके उपन्यास ने जानवरों से बातें करना सिखला दिया मुझे। आपके लिए क्या कहूँ बस इतना कि आप गुड़ हैं और मैं मूक..बस स्वाद को गर्दन हिलाकर समझा सकता हूँ कि आप क्या हैं!!
साहित्य से मेरा वास्ता न था लेकिन आपके लेखन ने मुझे इस राह का मुसाफिर बना दिया है। आप प्रेरणा स्तंभ बने रहेंगे ..ऐसी मनोच्छा..
आपका अनुगामी...!

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30 JUL 2018 AT 21:55

श्री धनपत राय मुंशी प्रेमचंदजी,

अक्सर सुना है लोगों से कि किसी की तकलीफ वही समझ सकता हैं जो खुद उससे गुजरा हो पर प्रेमचंदजी के रचनाओं को पढ़ने के बाद ऐसा लगा के मनुष्य का "संवेदनशील" होना उतना ही जरूरी है । उनकी कई रचनाओं में से एक उनकी लिखी हुई "निर्मला " को जब मैंने पढ़ा यकीन नहीं होता कोई पुरूष किसी स्त्री की व्यथा और उसकी मनःस्थिति का इतना सही वर्णन कैसे कर सकता हैं ।
सचमुच उनका योगदान अविस्मरणीय हैं।।
#LETTERTOPREMCHAND

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31 JUL 2018 AT 13:45

हिंदी साहित्य के महानतम रचनाकार मुंशीजी ,

आपकी रचनाएँ साहित्यिक धर्मनिर्पेक्षता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

दशकों पहले लिखी गई रचनायें आज के राजनीतिक परिवेश में फिर से दोहराई जाए तो शायद उच्चवर्गीय राजनीतिज्ञ अपने बंद वातानुकूलित कमरों में बैठे बैठे ये भेद समझ पाए कि जनसाधारण के जीवन की मूलभूत ज़रूरत बिना धर्मों के बंटबारे के भी पूरी की जा सकती है ।

अन्यथा हामिद का दर्द मुंशीजी की लेखनी कागज पर न उतार पाती।

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