YONO OTP that never comes on time!
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शब्द उग्र विचार हैं, शब्द विचार... read more
एक समय की बात है जब वो आती थी बिना बुलाए। कभी माँ की थपकी के साथ आती थी और कभी दादी की लोरी सुनते ही खुद को नहीं रोक पाती थी। फिर मैं बड़ी हो गई और वो धीरे-धीरे छोटी होती चली गई। अब जब कई जमाने गुजर गए। मेरे अपने न जाने कितने गुजर गए। आँखों में बस यादें और चिंताएं बची हैं। बच्चे भी बड़े हो गए और ये पंछी भी घोंसले छोड़ उड़ गए। अब मेरा अकेलापन उसे भी ज्यादा नहीं भाता है। बच्चे फोन कर डॉक्टर की सलाह लेते हैं।
दिवाली को दो दिन रह गए हैं। कुछ दिनों के लिए सब पंछी वापस अपने आशियाने में आ रहे हैं। कल वो भी आ जाए शायद। मेज पर मेरी रिपोर्ट रखी है जो मुझसे छिपाई गई थी। मैंने आज पढ़ ली है। कुछ दिन ही और हैं फिर मैं और वो एक होंगे।अंततः आखिरी अनंत नींद में जाने से पहले अपनों को देख लेने का सुकून है।-
ये जो अकड़ है,
ये अकड़ बेवजह है..
ये अल्हड़ है,
अंत से बेखबर है..
अंत सबका एक है,
जहां हर अकड़ बेअसर है..
वही अग्नि..
वही राख..
फिर भी कुछ बच जाए तो..
वही त्रिवेणी..
वही प्रयागराज...-
वो बूढ़ी हो रही थी,
संग बूढ़ा हो रहा था घर..
बूढ़े हो रहे थे घर के दरवाजे,
गलीचे और घर से सटे बाड़े..
बूढ़ा नहीं हो रहा था बगीचा,
बगीचे में लगे पेड़...
पेड़ पर आते मौर
और मौर की पीछे छिपे कच्चे आम..
आम के पड़ोसी जामुन,
आमला और अमरूद..
वो बूढ़ी हो रही थी,
संग बूढ़ा हो रहा था पड़ोस..
बूढ़े हो रहे थे पड़ोस के घर,
घरों में रह रहे पड़ोसी और गली मोहल्ले..
बूढ़ा नहीं हो रहा था तो रिश्ता,
हर दूसरे दिन मनाते त्योहार...
त्योहारों पर बनाते पकवान
और उन पकवानों के स्वाद..
ज़िंदगी के हर स्वाद में
साझा होता पड़ोस का साथ..-
Just before exiting the place, I asked her, so how did you find this place? Day well spent?
She was still focusing on the last cage to click a perfect shot but replied, 'It was ok. I am happy and sad both.'
'Why!!' I asked.
'I am happy for myself. I enjoyed so much today. I am sad for the animals, they are kept away from their natural habitats.'
'Furthermore, we took over most of their habitat on earth', she sums up her thoughts while capturing the last picture at the zoo.-
शब्द खोखले हो गए हैं, इनमें कुछ भाव भरोगे?
गीत बेसुरे हो गए, इनमें तुम राग भरोगे?
प्रीत पराई सी लगे अब, रिश्तों में कुछ अनुराग भरोगे?
भाव यदि तुम बेच सको तो मैं एक खरीददार हूँ..
मोल जो चाहे वो ले लो, हर दाम को मैं तैयार हूँ..
शर्त मेरी बस रहेगी, भाव की भाषा नेक रहेगी..
वही रहेगी राजा की वही रंक के गीत रहेगी..
न जाति पर बदलेगी, न धर्म के रंग में रंग बदलेगी..
न पुरुष की ज्यादा रहेगी, न स्त्री को कम मिलेगी..
न नेताओ सी दल बदलेगी, न भाषा के संग बदलेगी...
अंधे, गूंगे, लंगड़े, बूढ़े हर मानुष की एक रहेगी..
भावो की सीमा सीमित क्यूँ हो,
हर पेड़, पहाड़, पशु और प्रकृति,
ब्रह्मा की सृजन के हर कण को ये स्वयम में समाहित करेगी.. .
भाव यदि तुम बेच सको तो मैं एक खरीददार हूँ..-
Mood decides the songs,
Songs decide the mood,
Life's same playlist
playing in the loop..
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महल सा घर और घर के बीचों-बीच बड़ा सा आंगन /
दिन गुजरे, पुस्तें गुजरी..
पिताजी के बिस्तर पकड़ते ही हो गए आंगन के कई टुकड़े/
फिर उठने लगी दीवारें धीरे-धीरे..
पहले मन में..
फिर आंगन में/-
कल कभी नहीं आता..
क्यों न मैं कल पर एक किताब लिख दूं..
कल पर छोड़ी हर बात का..
इस किताब में हिसाब लिख दूं..
लिख दूं हर अटके काम को..
लिख दूं हर अधूरे अरमान को..
कल कभी नहीं आता..
क्या मैं कुछ सपने लिख दूं..
आना तो उन्हें भी नहीं है..
मैं कुछ छूटे अपने लिख दूं..
क्यों न कल में ले जाऊं इस किताब को..
दे दूं अपना लिखा नूर आफ़ताब को...-