Vibha Katare   (Vibha)
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Joined 21 July 2018


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6 OCT AT 18:29

शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं*

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3 OCT AT 19:38

What hurts more?
The words..
Words of?
loved ones..
Why?
It's 'Moh'

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27 SEP AT 23:50

लो फिर मेरे किरदार ने एक नया किरदार लिखा..
तुमसे मिले खुद में नया किरायेदार लिखा..
किरदार पे किरदार..
एक आज पहना तो पिछला मुखौटा उतार रखा..
मुद्दे की बात ये है कि,
क्या तुमने अपना वही किरदार बरकरार रखा..

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29 AUG AT 19:08

खुद से मिले जमाने हो गये..
पुराने सारे तराने हो गये..
पोरों पे सिलवटें बढ़ने लगी हैं..
हल्का सा झोंका, रूह सिहरने लगी है..
मैं चुन लूं खुद को..
नया बुन लूं खुद को..
कुछ नये गीत लिख दूं..
कुछ नई रीत लिख दूं..
मैं मुझको ही मेरा मनमीत लिख दूं..

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15 AUG AT 23:13

हमने उनसे कई...
मनो सँगे जा भी कई क कूई से ने कईयो तुम/
उन्ने बिनसे कई..
हमने कही थी एक..
उन्ने एक की चार कर कई,
मनो उन्ने सँगे बिनसे कई के कूई से ने कईयो तुम /
बिन्ने आगे कुजाने और किन किन से कई..
४ क १४ कर क कई..
मनो सँगे सबसे कई के कूई से ने कईयो तुम /
मनो जिन ने जिनसे भी कई सबने अपनी लगा लगा क कई..
सँगे सँगे जा सुई कई के कूई से ने कईयो तुम /
एक दिना एक फलाने आये....
उन्ने हमई से हमरी कही..
तनक तनक नई,
का जाने कित लो कित तक कई..
मनो सँगे जा भी कई के कूई से ने कईयो तुम...

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4 AUG AT 23:48

चाँद, बारिश और मेरा मन..
आधा है या आधा नहीं..

मौसम कुछ नम है,
मिट्टी क्यों कहे, बारिश हुई ही नहीं..

हम खुश नहीं हैं,
और कुछ ग़म भी नहीं..

सही कितना गलत है,
गलत कितना सही..

आधा सच, आधा झूठ,
सच सच है, या है ही नहीं...

चाँद बारिश और मेरा मन..
सब बेमन!!

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4 AUG AT 1:19


हर रूप तुमने मुझमें देखा..
माँ को देखा.. पत्नी को देखा..
एक बेटी एक बहू को देखा..
बहन को देखा.. भाभी को देखा..
एक कमजोर गृहणी.. कुशल कर्मचारी को देखा..
कुछ कम कुछ ज्यादा देखा..
हर काम पर हरदम तन्श फेंका..
तुमने कभी मुझ में मुझको नहीं देखा..
देख लेते तो हम आज कुछ और ही लिखते..
हर रूप को अपने, तुम पे निछावर कर देते...

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5 JUL AT 0:14

वह उसूलों की किताब कहाँ मिलेगी...
जिसमें लिखा है, मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं..
और जो नहीं करना चाहिए आखिर क्यों नहीं..

जिसमें लिखा है, समझदारी का पैमाना..
किस बात पर है मुस्कराना और किस बात पर खिलखिलाना..
और जब बात पसंद न आए तो कैसे चुप रह जाना..

जिसमें लिखी हो रिश्तों की परिभाषा..
किसको कितनी तवज्जो देना है, किसको है दरकिनार कर जाना..
और जिसको है अपनाना, उस अपनापन में खुद को है कितना भुला जाना..
जिसमें लिखा हो, दहलीज में बंध जाना..
पंखों में पाबेज बांध..
देवी सी गरिमा पाना..
और दानव के छल में हर बार छले जाना..
और जब छले जाना तो किसके आगे गुहार लगाना..

जिसमें लिखा है, हर वो उसूल दूसरों का बनाया गया, मुझ पर आजमाया गया..
बिना मेरी इजाजत..
फिर क्यों बिना कुछ शिकायत मुझे है निभाना..

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4 JUL AT 20:27

कोरे रहे कागज़..
सूखती रही स्याही..
सूरजमुखी हुई आँखें
टूट रही अब आस...
अरुण की आभा दिखे नहीं..
मन अंधियारी रातों में भटकता फिरे..
चुन लूँ कुछ भाव तुम्हारे..
दे दूँ शब्द अपने सारे..
आखिरी बूंद स्याही से
एक पूर्ण विराम लगा...
सो जाऊँ मैं चिरकाल तक..

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4 JUL AT 11:03

Gyan ki baaten
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Common phrase -
"Don't judge a book by its cover"

Fact -
Covers are designed to judge the book by it.

Conclusion -
1. Always design the cover of your book the way you want others to judge your book
2. Learn to judge others book by its cover correctly

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