बिरसा! तुम्हारे उलगुलान की
वह आवाज़
जो तुमने उठाई थी
अब तलक जंगल से निकल कर
हर गली, चौराहे, नुक्कड़ पर गूँज रही है....
(15November1875-9June1900)-
भारतीय संस्कृति की चेतना भाग 2
मिशनरी आधुनिक शिक्षा और भारतीय संविधान के आड़ में औपनिवेशिक गुलामी भारतीय को उपहार स्वरूप बांट रहे हैं। 25 दिसम्बर को ईशु मसीह का जन्मदिन मनाया जाएगा। सवाल ये है की भारत के संस्कृति को बढ़ावा न देकर सिर्फ पश्चिमी देशों के चलन को बल क्यों दिया जा रहा ?-
यदि हमें अपना और देश का,
वास्तविक रूप विकास करना है तो,
हमें अपनी जाति, धर्म , संस्कृति, रिति–
रिवाजो का सम्मान कर एवंं जनजातिय
लोगों को साथ लेकर चलना होगा ।।।
जय अादिवासी ।
जय मूलनिवासी।।-
भारत के संविधान को लिखने में 2 वर्ष
11 महीने 17 दिन लगे और झारखंड
सरकार एक नियुक्ति नियमावली 2 वर्ष
में नहीं बना पाई। वंशवाद से सत्ता
जरूर मिल सकती है लेकिन शासन
चलाने का सामर्थ्य नहीं। झारखंड के
जल, जंगल और जमीन के बेहतरी
के लिए पढ़े लिखे आदिवासियों को
राजनीति में आकर इस वंशवाद को
खत्म करना हीं होगा । हेमंत जी
आपसे ना हो पाएगा,
गद्दी छोड़ दीजिए 🙏🙏-
कहा किसी ने खुदा सुनता है
दर्द दिलों के तो मैं जा पहुंचा
खुद को समेट मैं आ गया वापस
क्योंकि वहां सालो की waiting list थी-
बचा नही था कुछ भी अब
के जैसे तकदीर मेरी सो गई
कसता रहा ताने जिंदगी को
ओर वो जिंदगी से dear jindagi हो गई-
जो टूट गए धागे सांसो के
तो फिर एक दफा किसी ओर गली मिलेंगे
जो आज तेरे आंगन में बरसात नहीं
तो कहीं किसी ओर दर जा खिलेंगे
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मैं धर्म से परे हूं
मुझे दर किनार कर दो
मैं सच्चा हूं अगर तो
मुझे दर मजार करदो
मैं पाक जो नज़र में
मुझे मुबारक-ए-ईद करदो
_BIRSA
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जो माथे पे पसीना
ओर कपड़ों पे धूल नहीं
तो ब्याज तेरे जीवन का
ओर तुझमें कोई मूल नहीं
जिंदगी एक किताब के जैसी है
पहला खोले जो पन्ना तो आखिरी भी दूर नहीं-