ज़िन्दगी भी विचित्र है , यहाँ किसी के ध्यान में आने के लिए मानसिक हत्या से ज़्यादा जरूरी शरीर की हत्या है।आप रोज़ मारे जा रहे हो या मर रहे हो समाज आपकी फ़िक्र तब करेगा जब अपनी इच्छाओं को अपने अंदर लेकर अंततः मर जाए।
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ख्वाहिशें और इंसान दोनों बचे रहते हैं
बहुत खूबसूरत है जिंदगी
कि कभी ना कभी रोते है लोग
जो सभी हँसते यहाँ पर
तो जिंदगी तमाशबीन सी होती-
थोड़ी सी जोर आज़माइश जरूरी है
जो झड़ जाए पत्ते शाख़ से
फिर जड़ो पे पानी जरूरी है …
है लंबे अरसे से धूप कहाँ
क्या हुआ, जो बादलों ने डाला पहरा
सर्द में भी बर्फ पिघलना जरूरी है …
दरमियाँ जो बातों बातों में बात हुई
पता नहीं किन बातों पे टकराव हुई
ध्यान रखना मनभेद ना रहे,
दिले बयाँ करने को भी मतभेद जरूरी है …
बेशक दूरियाँ हैं मुलाक़ातों में
चले हैं तो मिलेंगे कहीं ना कहीं
है दुनिया गोल तो मिलना जरूरी है …-
रास्ता बताते जाना
जो कभी मिल पाओ मुझसे
अपना पता बताते जाना ।
ढूँढते है इर्द गिर्द, है निगाहें दरवाज़े पे
जो लौट पाओ फिर
तस्वीरे धुंधलाते आना
वो सागर की मोती
उसे जी लेने दे सकुचन की गहराई
जो छू भी लो
फिर भी नींद से ना जगाना
कल का कौन जाने
है आज भीगी धुँधली रात
तन बदन है मूर्छित से
तकिए के सिराहने
बचपन की बेफ़िक्र नींद दे जाना-
है अमावस की रात टली
ज़िंदगी में थोड़ी रौशनी आने दे
जग में क्या क्या न ढूँढा
ख़ुद को ख़ुद से मिल जाने दे
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चारों ओर धुँध सही
आँखों को साफ़ रहने दो
है बस एक ज़िंदगी
ख़ुद के ही नाम रहने दो-
कुछ ज़िंदगी को भी,
मरहूम रहने दे
चल मुसाफ़िर बन,
मंज़िल जरा दूर रहने दे
जो हासिल हो,
फिर क्या तेरा, क्या मेरा
ख्वाहिशें अधूरी सी,
उसे भी ख़ुद में मौजूद रहने दे-
कुछ ज़्यादा आरज़ू
ऐ ज़िंदगी नहीं है तुझसे
ग़र मंज़िल मुकम्मल ना हो
तो सफ़र खूबसूरत रखना-