//कई बार यूॅं होता है//
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(अनुशीर्षक)-
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कोई तुम्हें,, तुम तक पहुॅंचाता है
कोई तुम्हें संसार का पता बताता है..
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यहाॅं हरेक शख़्स जो तुमसे रू-ब-रू है
इक नई दास्तां सुनाता है......
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जिसने हमें जीवन दिया
जिसने किया दुलार;
हम ऋणी हैं सदा उनके
जिसने किया हमसे प्यार....-
बाहर की खोज निरर्थक है
मेरा बुद्ध मेरे भीतर है,,,,
तुम्हारा बुद्ध...... तुम्हारे भीतर।।-
कितनी उत्कंठा
कितनी प्यास
ओ राही! तुम किसलिए उदास...?
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कौन किसके दु:ख बाॅंटे
कौन किसके साथ चले
अपनी-अपनी कश्ती है
तो ले अपनी-अपनी पतवार चलें.....
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कोई छाॅंव मिले
कोई मीत मिले
तो उसके पहलू में सुस्ता लेना
तुम गीत नया फिर गा लेना......
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//स्त्रियाॅं//
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वे लकड़ियाॅं नहीं हैं
जिन्हें जब जी चाहे
अपने लालच की भट्टी में सेंककर
अपनी कुत्सित मंशा की पूर्ति करोगे,,
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वे सिर्फ हाड़-मांस का पुतला नहीं हैं
जिन्हें देह के तराजू में तोल कर
उनका मूल्य आंकोगे,,
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यदि उनका जलता हुआ अस्तित्व देखकर
तुममें कोई आक्रोश नहीं है
तो फिर तुम कैसे स्वंय को मनुष्य होने के योग्य मानते हो...
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यदि आपने,,,
बहुत दिनों से नहीं गाया कोई गीत
नहीं लिखी कोई कविता
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बहुत दिनों से नहीं सुना कोई प्यारा-सा संगीत
नहीं पढ़ी कोई अच्छी-सी किताब
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बहुत दिनों से नहीं किया किसी को याद
नहीं किया किसी का इंतज़ार
तो देर मत करो,,
आज वो ही दिन है!!
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काॅंटों भरे रास्तों में चलते -चलते
यूॅं ही किसी रोज़
जब तुम्हारे तलवे हो जाऍं छलनी
तब तुम,,,,,, किसी छायादार वृक्ष तले विश्राम करना
और फिर,,,,,रास्ता बदल देना...........-