मेरे नौ निहाल तुम ढाल बनो देश की
चाल वन चरित्र की लाज गुरु वेष की
स्वर्ग के राज्य को धरा पर उतार दो
हो रहे विरूप जो उनको नव श्रृंगार दो
श्रृंगार को संवार दो निखार को उभार दो
निषेध को नकार दो विधि को फिर प्रचार दो
सीमनें उधेड़ दो छद्द रूप वेष की
मेरे नौ निहाल तुम...........
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वह कहता है
उसे चिड़िया से प्यार है
और खरीद लाया है
चिड़िया के लिये पिंजरा
शायद वह कभी समझ पाये
उसे चिड़िया प्यारी लगती है
पर चिड़िया से प्यार नहीं!!
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सुनो यदुवाईन प्रिये ❤️
मन है कि किसी ढलती शाम तुम्हे बनारस के ८० घाट के किनारे बुला के तुम्हारी टीपीर टीपीर करने वाली बातो को सुने और गर्म चाय के कुछ चुस्कियां लेकर मैं मुस्कुराऊँ ...।। और बीच मे टोकते हुवे बोलू की चाय भी पिलो यदुवाईन नही तो ठंडी हो जाएगी😊..
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तुम घाट बनारस बनो कभी, मैं गंगा जल बन जाऊंगी
फिर बार-बार हिलकोरें बन तेरे क़दमों को छू आऊंगी,
तुम काशी के शिव बनो कभी, मैं नंदी तेरी बन जाऊंगी
कोई कानों में कुछ मांगे तो उसे तुम तक मैं पहुंचाऊंगी,
तुम बनो बीएचयू गेट कभी, मैं लंका तेरी बन जाऊंगी
तुम पहलवान लस्सी बनना मैं पान गिलोरी होऊंगी,
तुम बनो वाटिका काशी की, मैं उनमें पुष्प बन जाऊंगी
तेरे प्रेम की सौंधी ख़ुशबू को अपने अंदर महकाऊंगी,
तुम शहर बनारस हो जाना, मैं इश्क़ तेरा बन जाऊंगी
तुम शाम कहो यदि कभी कहीं मैं सुबह-ए-बनारस लाऊंगी.!
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"अन्तर्युद्ध पर विजय"
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वो एक स्त्री ही है,
जो अपनी पीड़ाओं से स्वयं का श्रृंगार कर
सबके मन को भा लेती है...!
( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें )-
मैं ठहरी कोई किनारे सी, तुम हो पानी सा बहाव प्रिये
तुम घाट घाट के पानी सा, मैं उनमें चलती नाव प्रिये!
मैं चाय के पीछे पागल सी, तुम चढ़ता नशा जैसे भांग प्रिये
तुम लगते बिल्कुल लस्सी सी, मैं लगती जैसे पान प्रिये!
मैं गंगा की आरती सी, तुम शिव का हो गुणगान प्रिये
तुम विश्वनाथ की शांति सी, मैं शहर बनारस की जाम प्रिये!
मैं दीवानी बरसाने की, तुम जाते भोले धाम प्रिये
तुम दिन भर जपते महादेव, मैं जपती राधे नाम प्रिये!
मैं तपती धूप दोपहरी सी, तुम शीतल ठंडी छांव प्रिये
तुम सुबह-ए-बनारस की लाली, मैं अवध की ढ़लती शाम प्रिये..!-
तुम पहली बार जब आओगे, तो तुमको बहुत भटकाएगा
रातों को घर की यादों से, ये मन रो कर रह जाएगा
फिर मालवीय की बगिया में, ये मन भी कहीं खो जाएगा
ये शहर बनारस अलग ही है, तेरी नस-नस में बस जाएगा...
कभी लंका पर, कभी घाटों पर, कभी विश्वनाथ में जाएगा
कभी किसी शाम ये मन, गंगा की आरती में बह जाएगा
जब वक़्त आएगा रुख़सत का, तो अक़्सर मन भर आएगा
इस शहर से एक दिन तुमको भी, अलग-सा इश्क़ हो जाएगा
जब जाओगे तुम छोड़ इसे, तब याद तुम्हें ये आएगा
जो हिस्सा था हर पल का मेरे, वो एक क़िस्सा बन जाएगा
अतीत के पन्नों पर अक़्सर, बनारस लिखा जाएगा
कोई पूछेगा कि क्या है इश्क़..?
तब याद बनारस आएगा... तब याद बनारस आएगा.....!-
चलो न करो तुम वादे सात जन्मों के
मगर इस जनम मेरे साथ चल पाओगे क्या,
देकर तुम अपने हाथ मेरे हाथों में
इन लकीरों को एक साथ उलझाओगे क्या??
चलो नहीं कहते कि तुम हर पल मेरे पास रहो
मगर जब भी सोचूं तुम्हें तो मेरे ख़्यालों में तुम आओगे क्या,
मैं कहां कहती हूं कि तुम हर पल मुझे हंसाते रहो
मगर जब भी तुम्हें सोच मैं रोऊं तो तुम मुझे अपने सीने से लगाओगे क्या??
चलो नहीं बनना मुझे तुम्हारी सांसें, तुम्हारी धड़कन
पर मुझे अपनी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बनाओगे क्या,
मैं कहां कहती हूं कि तुम क़ैद रहो मेरी यादों के तहख़ानों में
मगर एक भरोसे पे ये मुहब्बत निभाओगे क्या??
मुझे कुछ नहीं चाहिए तुमसे सिवाय मुहब्बत के
तुम मेरी ये हसरत पूरी कर पाओगे क्या,
चलो न करो तुम वादे सात जन्मों के
मगर बस इस जनम मेरे साथ चल पाओगे क्या.???
- Pen of APT✍️
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जिस प्रकार
ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियां
अवलम्बित होती हैं सूर्य पर
ठीक उसी प्रकार
परिवार की समस्त शक्तियां
अवलम्बित होती हैं एक "पिता" पर...!
(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)
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लाल रंग : त्याग और सम्मान
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सुना है सच्चा प्रेम
बिछड़ने के बाद भी नहीं बिछड़ता
इसलिए मेरा तुमसे एक निवेदन है
कि जब कभी तुम अचानक मिलना
और देखना मेरे माथे पर लाल रंग
तो मुझे जिम्मेदार न ठहराना
अपनी वेदनाओं का,
(कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)-